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पाँचवाँ अध्याय । ज्ञानकी सीमा ।
हमारा अन्तर्जगत्के विषयका ज्ञान अन्तर्दृष्टिके द्वारा प्राप्त है, और बहिर्जगत्के विषयका ज्ञान देखने-सुनने-सूंघने-चखने और छनेसे प्राप्त होता है। उस अन्तर्दृष्टिकी शक्ति और देखने-सुनने आदिकी शक्ति, सभी सीमाबद्ध हैं, सबकी एक हद है। ___ अन्तर्दृष्टिके द्वारा हम आत्माके अस्तित्वको जान सकते हैं सही, किन्तु उस आत्माका स्वरूप क्या है, आत्मा कहाँसे आया और कहाँ जायगा, उसका आदि और अन्त क्या है, इन सब प्रश्नोंका स्पष्ट उत्तर देनेमें अन्तर्दृष्टि सर्वथा असमर्थ है । इन सब विषयोंके सम्बन्धमें हम जो कुछ विश्वास करते हैं, वहाँ तक अनेक युक्तियों और तौके सहारे पहुंचते हैं। इसके बाद, यद्यपि अन्तजगत्की कुछ क्रियाओंका फल (जैसे बहिर्जगत्की वस्तुओंको प्रत्यक्ष करना, अतीत विषयकी स्मृति, इत्यादि) ज्ञानकी सीमाके अन्तर्गत है, किन्तु अन्तजगत्में सब क्रियाएँ कैसे संपन्न होती हैं, बहिर्जगत्के विषयोंके साथ आत्माका किस तरह साक्षात् सम्बन्ध होता है, अधिक क्या कहें, अपनी देहके साथ अपनी आत्माका कैसा सम्बन्ध है और आत्मा किस तरह देहको संचालित करती है, इन सब बातोंका कुछ भी तत्त्व अन्तष्टिके द्वारा नहीं जाना जाता ये सब विषय हमारे ज्ञानकी सीमाके बाहर हैं। मेरी आत्मा किस तरह कार्य करती है, सो मैं जान नहीं सकता, यह एक अत्यन्त विचित्र बात है, लेकिन विचित्र होने पर भी सर्वथा सत्य है।