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ज्ञान और कर्म। [प्रथम भाग अपनी आत्माके भीतर कैसे कार्य होता है, वही जब हम संपूर्ण जान नहीं सकते, तब बहिर्जगत्के विषयोंको कैसे संपूर्ण जान सकेंगे ? बहिर्जगत्सम्बन्धी ज्ञानलाभका जरिया आँख, कान, नाक, जीभ और त्वचा, ये पाँच इन्द्रियाँ हैं। इन पाँचों इन्द्रियोंके द्वारा देखा, सुना, सूंघा, चखा और छुआ जाता है,
और उनके द्वारा रूप, शब्द, गन्ध, रस, स्पर्श इन पाँच विषयोंका ज्ञान उत्पन्न होता है। किन्तु जैसे आँख न होती तो रूप या प्रकाशके संबन्धमें किसी तरहका ज्ञान न होता, और जो जन्मका अंधा है उसको वह ज्ञान हो नहीं सकता, वैसे ही हमारी पाँचों इन्द्रियोंके अतिरिक्त अन्य कोई इन्द्रिय न रहनेके कारण रूप-शब्द-गन्ध-रस-स्पर्श इन पाँच गुणोंसे भिन्न अन्य किसी गुणके सम्बन्धमें हम कोई ज्ञान नहीं प्राप्त कर सकते, और बहिर्जगत्की वस्तुओंमें इन पाँच गुणोंके अलावा अन्य गुण है या नहीं, सो हम नहीं जानते। किन्तु यह बात भी हम किसी तरह नहीं कह सकते कि कोई छठा गुण है ही नहीं। कोई छठा गुण अगर है, तो वह हमारे ज्ञानकी सीमाके बाहर है।
फिर, जो पाँच इन्द्रियाँ हैं, उनकी भी शक्ति अत्यन्त संकीर्ण है। आँखके द्वारा प्रकाश और आकारके विषयका ज्ञान पैदा होता है, किन्तु प्रकाश बहुत थोड़ा और आकार अत्यन्त छोटा अगर होता है तो आँख उसे विना सहायताके नहीं देख पाती-हाँ, दूरवीक्षण और अणुवीक्षण यन्त्रकी सहायतासे कुछ कुछ देख पाती है। अल्पाधिक्यके प्रभेदके सिवा, प्रकाशकी किरणों में वर्णगत प्रभेद भी है। उनमेंसे कुछ वर्णोंकी किरणोंको छोड़कर अन्य किरणोंको सहजमें देख पानेकी शक्ति हमारी आँखोंमें नहीं है । केवल उनकिरणोंके कार्यसे उनके अस्तित्वका अनुमान किया जाता है । उसी तरह हमारी श्रवण-इन्द्रिय भी सब प्रकारके शब्दोंको नहीं सुन पाती। बहुत ही धीरे शब्द होता है तो उसे हम यंत्रकी सहायताके विना नहीं सुन पाते । हमारी घ्राणेन्द्रियकी शक्ति कुत्ते आदि अन्यान्य अनेक जातिके जीवोंकी घ्राणशक्तिसे कम है। हमारी स्पर्शेन्द्रिय गर्मी ( ताप) के थोड़े तारतम्यका अनुभव सहजमें नहीं कर पाती। वह तारतम्य निश्चय करनेके लिए यंत्रका प्रयोजन होता है। यन्त्रकी शक्ति भी सीमाबद्ध है इस कारण, सब नीहारिकाएँ तारकापुंज हैं या नहीं, यह निश्चय नहीं कहा जा सकता, और परमाणुका. आकार कैसा है, यह भी कोई नहीं देख पाता । इसी कारण, पाँचके सिवा