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चौथा अध्याय ]
बहिर्जगत्।
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यहाँतक केवल जड़जगत्की बात हो रही थी। जीवजगत्का मामला और भी विचित्र है । जीवजगत्के दो भाग किये जा सकते हैं-एक उद्भिज्जविभाग
और दूसरा प्राणिविभाग। इन दोनों भागोंमें जड़की गति उत्पन्न करनेवाली शक्तिकी क्रियाके अलावा और एक श्रेणीकी क्रियाएँ देख पड़ती हैं-जैसे जन्म, वृद्धि और मृत्यु । इन्हें जैविक क्रिया कहते हैं। प्राणिविभागमें इनके सिवा और भी एक श्रेणीकी क्रियाएँ देख पड़ती हैं--जैसे इच्छानुसार जाना आना और अपना उद्देश सिद्ध करनेका प्रयत्न । इन्हें सज्ञान-जैविकक्रिया कहा जा सकता है।
जड़जगत्के संबंधमें जैसे प्रश्न उठ सकता है कि वह मूलमें एक तरहकी वस्तुसे गठित है या अनेक तरहकी वस्तुओंसे गठित है और उसकी सब क्रियाएँ मूलमें एक हैं या भिन्न प्रकार की हैं, वैसे ही जीवजगत्के सम्बन्धमें भी प्रश्न उठता है कि हम जिन सब अनेक प्रकारके जीवोंको देख पाते हैं वे सब एक तरहके जीवसे, या भिन्न भिन्न प्रकारके विविध जीवोंसे उत्पन्न हैं ? और जीवजगत्की सब क्रियाएँ मूलमें एक प्रकारकी या अनेक प्रकारकी हैं ? पहले प्रश्नके दो उत्तर पाये जाते हैं। एक यह कि सृष्टिकर्ताने भिन्न भिन्न जीवोंकी अलग अलग सष्टि की है, और हर एक प्रकारके जीवसे केवल उसी प्रकारके जीव पैदा हुआ करते हैं। दूसरा उत्तर यह है कि मूलमें दो ही एक प्रकारके जीव थे, और उनसे बहुत दिनों में अनेक अवस्थाएँ बदलते बदलते क्रमशः अनेक प्रकारके जीव उत्पन्न हुए हैं। फिर कुछ लोग इतनी दूर तक जाते हैं कि उनके मतमें जड़से ही जीवकी उत्पत्ति हुई है।
ऊपर कहे गये मतको क्रमविकासवाद या विवर्तवाद कहते हैं। प्रसिद्ध जीवतत्त्वके ज्ञाता पण्डित डार्विनने इस मतका समर्थन करनेके लिए बहुत खोज की है। इस मतके अनुकूल अनेक बातें हैं। उनमेंसे दो-एक यहाँ पर कही जाती हैं।
उद्भिज्जगत्में देखा जाता है कि किसी किसी जातिके वृक्ष-लता आदिकी अवस्थाके परिवर्तनसे उनके फूल-फलकी विशेष उन्नति या अवनति होती है। जैसे, गेंदेके पेड़की कई बार कलम करनेसे उसका फूल खूब बड़ा होता है। पञ्चमुखी दुपहरियाके पेड़की डाल अगर अच्छी तरह धूप और हवा नहीं पाती, दबावमें पड़ जाती है, तो उसमें इकहरा फूल निकलता है । तुख्मी आमका