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जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता
ब्रह्मा रायमल्ल : (सं० १६१५-१६३३) ये मूलसंघ शारदा गच्छ के आचार्य रत्नकीति के पट्टधर अनन्तीति के शिष्य थे। १ रत्नकीर्ति का सम्बन्ध राजस्थान और गुजरात की अनेक मट्ठारक गढ़ियों से रहा है। इन्हीं की परम्परा में हुए ब्रह्मरायमल्ल का जन्म हूबड़ जाजि में हुआ था। इनवैपिताका नाम महीय एवं माता का नाम चंपा था । २ समुद तट पर स्थित ग्रीवापुर में " भक्तामर स्तोत्रवति" के रचने का उल्लेख डा० कासलीवाल ने किया है। इनकी अधिकांग रचनाएं राजस्थान के विभिन्न स्थानों में रची गई है इसी आधार पर श्री नाहटा जी ने इन्हें राजस्थान का निवासी बताया है । ४ कवि के जन्म और जीवनवृत्त के संबंध में जानकारी उपलब्ध नहीं परन्तु रचनाओं में गुजराती का पुट देवते हुए यह संभावना प्रतीत जोती है कि गुजरात में स्थित किसी भट्टारक गद्दी से इनका सम्बन्ध अवश्य रहा होगा ।
सोलहवी शताब्दी के अन्तिम चरण में पाण्डे रायमल्ल भी हो गये हैं। ये संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश के प्रकाण्ड विद्वान थे। कविदर बनारसी दास ने उन्हीं रायमल्ल का उल्लेख किया है। डॉ० जगदीश चन्द्र जैन इन्हीं रायमल्ल के लिए लिखा है कि ये जैनागम के बड़े भारी वेता तथा एक अनुभवी विद्वान थे। ५ विवक्षित ब्रह्म रायमल्ल इनसे पृथक हैं । ६
ब्रह्म रायमल्ल जन्म से कवि थे उनमें हृदय पक्ष प्रधान था। इन्होंने हिन्दी में अनेक काव्यों की रचना की। इनकी भापा सरस और प्रसाद गुण से युक्त है। इन्होंने जैन नैयायिकों और सैद्धांतिकों का भी गहन अध्ययन किया था इनके सरल काव्यों में जैन धर्म के तत्त्व तथा मानव की सूक्ष्म वृत्तियों का गहन परिचय है यही कारण है कि इनका काव्य रसपूर्ण हो उठा है। १ जैन ग्रन्थ प्रशस्ति संग्रह, प्रथम भाग, दिलपी, पृ० १०० २ प्रशस्ति संग्रह' दि० जैन अतिशय क्षेत्र थी महावीरजी, जयपुर, डॉ. कस्तूरचंद कासलीवाल, पृ० ११ ३ वही ४ हिन्दी साहित्य, द्वितीय खण्ड, संपादक प्रधान डॉ. धीरेन्द्र वर्मा, पृ० ४७६ १ हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, कामताप्रसाद जैन, पृ० ७६ ६ पं० नाथूराम प्रेमी ने दोनों को एक ही समझा था। हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, पृ० ५०