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________________ जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता ওও प्रकरण : २: १७वीं शती के जैन गूर्जर कवि और उनकी कृतियों का परिचय आलोच्य कविता के सामूहिक परिवेश तथा पृष्ठभूमि का अवलोकन कर चुकने के पश्चात् हम इस परिवेश में जन्मे कवियों और उनके द्वारा रची गई कविताओं को कालानुक्रम से देखने का उपक्रम करेंगे।' सत्रहवीं शती में हिन्दी में कविता करने वाले गुजरात से सम्पृत्तन जैन कवि विपुल संख्या में उपलब्ध होते हैं । इन कवियों में अधिकाशतः अज्ञात है या विस्मृत हो चुके हैं। इनकी रचनाएं भी जैन भण्डारों में दवी पड़ी हैं। हम इनमें से कुछ चुने हुए प्रमुख कवियों तथा उनकी कृतियों का संक्षिप्त साहित्यक परिचय देना प्रसंगप्राप्त समझते हैं क्योंकि इससे कवियों व उनकी कृतियों की भाषा सम्बन्धी स्थिति स्पष्ट होगी। नयन सुन्दरं : (सं०,१५६२-१६१३.) ये वडतपगच्छीय मानुमेरुगणि के शिष्य थे। १ इन्होंने गुजराती में विपुल साहित्त की रचना की है । अतःसाक्ष्यों के आधार पर इनके विस्तृत जीवनवृत्त का पता नहीं चलता । ये समर्थ कवि और विद्वान उपाध्याय थे। हिन्दी में इनकी कोई स्वतंत्र कृति नहीं मिलती। इन्होंने गुजराती भाषा में प्रणीत अपनी विभिन्न कृतियों में संस्कृति, प्राकृत, हिन्दी तथा उर्दू के उद्धरण प्रचरमात्रा में दिये हैं। कुछ अंश तो पूरे के पूरे हिन्दी-गुजराती मिश्रित ही हैं। कुछ स्फुट स्तवनादि भी गुजरातीमिश्रित हिन्दी में प्राप्त हैं, जिनमें " शंखेश्वर पार्श्व - स्तवन" १३२ गाथा का तथा शांतिनाथ स्तवन विशेष उल्लेखनीय हैं.। २ । ये . बहुश्रुत और विविध भाषाओं के ज्ञाता थे। ३ जिनविजयजी के पास "नलदमयंती रास" की एक ऐसी प्रति है जिसमें प्राचीन कवियों के काव्यों का सुभापित रूप में संग्रह किया गया है । कवि के समय में हिन्दी मापा भी गुजरात में परिचित एवं मिश्ररूप से व्यवहृत थी इसका यह प्रमाण है । एक उदाहरण दृष्टव्य है " कुण नैरी कुण वल्लहो, कवण अनेरो आप, भव अनंत ममता हुआं, नित्य नवां मा वाप।" ४ १ जैन गूर्जर कविओ, भाग १, पृ० २५४ २ वही, भाग ३, खंड १, पृ० ७५५ ३ आनंद काव्य महोदधि, मौक्तिक ६, पृ० २१ ४ रूपचंद कुवर रास, पृ० १५७
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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