________________
जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता और काव्योपयुक्त गुणों पर मुग्ध रहे और इसे सीखने तथा इसमें अपनी अलंकृत अभिव्यक्ति के लिए लालायित रहे। यह भाषा इतनी काव्योपयुक्त और भाववाहक है कि अहिन्दी भाषा कवि उसे अपनाए विना न रह सके । (५) भाषा साम्य :
गुजराती और हिन्दी में अत्यन्त साम्य है। इसी भापा-साम्य को लेकर प्रारम्भ से हो अनेक जैनगूर्जर कवि हिन्दी भाषा की ओर आकर्षित हुए और अपनी मातृभाषा के साथ-साथ खड़ीबोली, नजभापा, डिंगल आदि में भी काव्य-रचनाएं करने लगे। (६) व्यापारिक संबंध :
गुजराती प्रजा मुख्यतः व्यापारी प्रजा है। गुजरात के जैन भी भारत के विभिन्न प्रान्तों में व्यापार चलाते रहे हैं। प्राचीन काल में भारत का व्यापार गुजरात के बंदरगाहों द्वारा हुआ करता था। अतः गुजरात के व्यापारी वर्ग में हिन्दी का कामचलाऊ उपयोग परम्परा से चला आया है । - (७) रीति ग्रंथों का अनुशीलन :
कला-प्रेमी अहिन्दी भापा कवियों को हिन्दी के रीतिकालीन साहित्य ने भी आकर्षित किया । संभवतः पिंगल, अलंकार रस आदि की जानकारी के लिए और उसे अपनी भापा में ढालने के लिए ये कवि संस्कृत रीतिग्रंथों के साथ हिन्दी के रीतिग्रंथों का भी अनुशीलन, अध्ययन करने लगे होंगे । यही कारण है कि गुजरात के विभिन्न जैन भण्डारों में विहारी सतसई तथा अन्य रीतिग्रंथों की भी प्रतियां उपलब्ध होती हैं। पाटण जैन भण्डार में भी विहारी सतसई की चार-पांच प्रतियाँ उपलब्ध हैं । (८) राष्ट्रीयःः
माधुनिक युग में राष्ट्रीय भावनाओं के उदय के साथ हिन्दी के भाग्य का भी उदय होने लगा । राष्ट्रीयता और राष्ट्रभाषा के आन्दोलनों में गुजरात आगे रहा है।
इस प्रकार सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनैतिक, साहित्यिक, व्यापारिक, राष्ट्रीय तथा अन्य कारणों से भी गुजरात के जैन कवियों ने हिन्दी की महती सेवा की है । इस संबंध में जनक देव का अभिमत समीचीन ही है
"गुजरातियों के हाथों हिन्दी की जो सेवा हुई है वह मूक होते हुएjभी संगीन है । उसमें सूर्य के तेज की प्रखरता या आंखों में चकाचौंध उत्पन्न करने वाली विजली-की चमक नहीं है। पर लालटेन की-सी उपयोगिता अवश्य है । उसमें दानेश्वरी का १. ब्रजभाषा का व्याकरण, किशोरीलाल वाजपेयी