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________________ जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता ३३ कर्म वन्धन से मुक्त मानव को शेप आयु तो भोगनी पड़ती है, वह नाम से भी पुकारा जाता है और जब तक शरीर है तब तक वेदना सहनी पड़ती है। किन्तु जब आयु, नाम, गोत्न तथा वेदनीय कर्मों का आवरण हट जाता है तब साधक को सिद्धिलाभ होता है, वह सच्चा आत्म-स्वरूप पहचान लेता है और सब प्रकार के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाता है । जैनों की दृष्टि से यही मानवता का पूर्ण विकास है, यही मानव-जीवन की अन्तिम सिद्धि और सार्थकता है। जैन मान्यतानुसार सिद्ध और तीर्थकर इस मानवता के प्रस्थापक और उसके विकास-चक को गति देने वाले हैं । स्वयं की मानवता का विकास करते हुए सिद्धिलाभ करने वाले सिद्ध हैं और अपनी मानवता के साथ साथ दूसरों में मानवता जगा कर उनका सच्चा मार्ग दर्शन करने वाले तीर्थकर हैं। तीर्थकर तीर्थों " की प्रस्थापना कर प्राणिमान के प्रति अपने सद्भाव तथा. सहानुभूतिमय प्रेम की वर्षा करते हए मानवता के सार्वत्रिक विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं। "जन" शब्द का अर्थ है - "जिन" के अनुयायी और "जिन" शब्द का अर्थ है-जिसने राग-द्वीप को जीत लिया है । जैन धर्म में ऐसे, महात्माओं को तीर्थंकर कहा है । उन्हें अर्हत अथवा पूज्य भी कहा जाता है । जैन धर्मानुसार २४ तीर्थंकर जैन धर्म की प्राचीनता : आज अन्यान्य विद्वानों द्वारा जैन धर्म को एक स्वतन्त्र अस्तित्व में जीवित, चिरकाल से पुष्ट और आदर्श धर्म के रूप में स्वीकार कर लिया गया है । एक भ्रान्त धारणा यह भी प्रचलित थी कि जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान महावीर थे-अर्थात जैन धर्म केवल २५०० वर्षों से ही अस्तित्व प्राप्त है। अब यह धारणा निर्मूल सिद्ध हो चुकी है। जैन धर्म आदि तीर्थंकर ऋषभदेव द्वारा प्रवर्तित धर्म है। आज इस मत का समर्थन अनेक रूपों में हो रहा है। . वैदिक धर्म के कुछ प्राचीन ग्रन्थों से भी सिद्ध होता है कि उस समय जैन धर्म अस्तित्व में था। रामायण और महाभारत में भी जैन धर्म का उल्लेख हुआ है। जैन धर्मानुसार वीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुनत स्वामी के समय में रामचन्द्रजी का होना सिद्ध है । ' महाभारत के आदि पर्व के तृतीय अध्याय में २३ वें और २६ वें श्लोक में एक जैन मुनि का उल्लेख हुआ है। इसी तरह शान्ति पर्व में (मोक्ष धर्म अध्याय२३६ श्लोक -६) जैनों के 'सप्तभगी नय' का वर्णन है। इस महाकाव्य के भीष्म पर्व के ६ वें अध्याय के श्लोक ५-६ में संजय की भारत स्तुति में अपभ का उल्लेख हुआ है । इससे यह ज्ञात होता है कि प्रथम जैन १. महावीर जयन्ती स्मारिका, राजस्थान जैन सभा, जयपुर, डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन का लेख, पृ० १३
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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