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________________ २६२ आलोचना-बंट गुणसागरसूरि : कृतपुण्य (कयवन्ना) रास । चन्द्रकीर्ति : सोलहकरण रास । जिनराजसूरि : गालीभद्र राम तथा गजसकुमार गम । ब्रह्म रायमल्ल : नेमिश्वर राम, सुदर्शन रास; तथा श्रीपाल राम । महानंदगणि : अन्जना मुन्दरी रास । विनयसमुद्र : चित्रसेन-पद्मावती रास तथा रोहिणी राम । विनय विजय : श्रीपाल रास । वीरचन्द्र : नेमिनाथ राम। समयसुन्दर : चार प्रत्येक बुद्ध रास, मृगावती गम, मिलमुत प्रिय मेलक रास, पुण्यसार रास, वल्कल चीरी गन, गत्रुजय राम, क्षुल्लक कुमार रास, पूजा ऋपि राम, स्यूनिभद्र राम तथा वन्नुपाल तेजपाल रास। सुमति कीति : धर्म परीक्षा रास । नयसुन्दर : रूपचन्द कुवर रास । इस रास ग्रन्थों में यद्यपि विपय वैविध्य नहीं फिर भी जैन-गुर्जर रामकारो की कथा कहने की कुगल प्रवृत्ति के दर्शन अवश्य होते है। ऐतिहामिक तत्वों की सुरक्षा, तत्कालीन समाज-जीवन के दृश्य, धर्मोपदेश तथा संसार-जान की बहमूल्य सामग्री इन 'रास' ग्रन्यों में उपलब्ध है। 'रास' परम्परा १२ वी सदी से १६ वी सदी तक निरन्तर प्रवहमान रही जो इसकी लोकप्रियता एवं व्यापकता का प्रमाण हे । इस प्रकार 'रास' का, एक स्वतन्त्र काव्यरूप की दृष्टि से बड़ा महत्व है। चौपाई : "चउपई" काव्य की परम्परा भी अपभ्रंश से ही प्रारम्भ होती है। यह कथानक प्रधान छन्द हैं। अपभ्रंग में इम छन्द का खूब प्रयोग हुआ । अतः कथानक प्रधान काव्यों के लिए यह प्रसिद्ध छन्द माना गया । जिनहर्प, विनयचन्द्र तथा समयसन्दर की कुछ 'चौपाई' नामक रचनाएँ दोहे-चौपाई छन्द में ही रचित है। आलोच्य युगीन जैन-गूर्जर कवियों की बड़ी रचनाओं में 'रास' के पश्चात् 'चौपाई' नामक रचनाएं ही अधिक संख्या में मिलती है। सभी रचनाओं में 'चौपाई' छन्द का निर्वाह नहीं हुआ है। जैसा कि स्पष्ट है मूलत: यह 'चौपाई' छन्द में रचित रचनाओं का ही नाम था; पर बाद में 'रामो' की भाँति प्रत्येक चरितकाव्य एवं वर्णनात्मक काव्य के लिए 'चौपाई संज्ञा रूढ़ हो गई। इन कवियों की इस प्रकार की प्राप्त रचनाएँ इस प्रकार है
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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