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आलोचना-खंड
सजीव रखा है। हिन्दी एवं गुजराती भाषाओं में रास माहित्य की विपुल सर्जना हुई है | ( इन रचनाओं में राजस्थानी और जूनी गुजराती' की रचनाएँ भी सम्मि लित है ) जैन गुर्जर कवियों ने रास - साहित्य की महती सेवा की है अब तक प्रकाशित समस्त रास - साहित्य की विस्तृत सूची श्री के० का० शास्त्री ने दी है | इसमें हिन्दी के रास - साहित्य का भी उल्लेख है ।
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सम्बन्ध में अनेक
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संस्कृत, हिन्दी तथा गुजराती के विद्वानों ने 'राम' नाम के व्युत्पत्तियां दी हैं, यहां उन सब का उल्लेख पिष्टपेषण ही होगा अब्दुल रहमान रचित 'संदेश रासक' में राम की जगह 'रासय' या रासउ' प्रयोग मिलता है, यह 'रासय' शब्द संस्कृत के 'रासक' शब्द का अपभ्रंश है । 'रासक' एक अति प्राचीन भारतीय नृत्य रहा है, जिसका सम्बन्ध कृष्ण लीला से रहा है ।२ जैन साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान श्री अगरचन्द नाहटा ने 'लकुटा रास' ( डंडियों के साथ नृत्य ) और तालारास ( तालियों के साथ ताल देकर ) नामक दो प्रकार के ग़मों का उल्लेख किया है ।३ डाँ० हजारी प्रसाद द्विवेदी के विचार से 'रासक' एक प्रकार का खेल या मनोरंजन है ।४ प्रो० विजयराय वैद्य ने रासो या रास को प्रासयुक्त दोहा चौपाई छन्दों तथा विविध रागों में रचे हुए धर्म-विषयक कथात्मक या चरित्रप्रधान लम्बा काव्य बताया है । ५ श्री हरिवल्लभ भायाणी ने 'संदेश रासक' की भूमिका में 'रासक' की विशेष चर्चा की है। उन्होंने इसे अनेक छन्दों से युक्त एक छन्द विशेष कहा है ६
श्री अगरचन्द नाहटा ने इस पर विशेष प्रकाश डाला है
(क) 'रास' शब्द प्रधानतया कथा काव्यों के लिए रूड-सा हो गया, प्रधान रचना रास मानी जाने लगी है ।
और रस
(ख) रास एक छन्द विशेष भी है ।
(ग) राजस्थान में जो परवर्ती रासो मिलते हैं, वे युद्धवर्णनात्मक काव्य के भी सूचक है । इसी कारण राजस्थानी में 'रासो' शब्द का प्रयोग लड़ाई झगड़े या
१. गुजराती साहित्यनुं रेखा दर्शन, पृ० ३२ ।
२. हिन्दी साहित्य कोष, पृ० ६५६ ।
३. नागरी प्रचारिणी पत्रिका, वर्ष ५८, अंक ४; प्राचीन भाषा काव्यों की विविध संज्ञायें, श्री अग्रचन्द नाहटा, पृ० ४२० ।
४. हिन्दी साहित्य का आदि काल, डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी, पृ० १०० |
५. गुजराती साहित्य की रूपरेखा, प्रो० विजयराय वैद्य, पृ० २० । ६. संदेश रासक, प्रस्तावना, डॉ० भायाणी ।