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आलोचना-खंड
आनन्दवर्द्धन के 'भक्तामर सर्वया' से संसार की भयंकरता के लिए प्रयुक्त प्रतीक देखिए
'सै अकुले कुछ मच्छ जहां गरज दरिया अति भीम भयो है, ओ वडवानल जा जुलमान जल जल में जल पान को है।" लोल उत्तरांक लोलनि के पर वारि जिहाज उच्छरि दियो है,
ऐसे तुफान मैं तौहि जप तजि में सुख सौ शिवधाम लयो है ।।४०॥१ यहां तूफानी समुद्र, संसार का प्रतीक है, मच्छ संसारी जीवों का प्रतीक है, वाडवानल संसार के दुःखादि का प्रतीक, उत्ताल तरंगे कष्टों व विघ्नों की प्रतीक, जहाज मानव देह का प्रतीक तथा प्रभु का नाम सुख और शक्ति का प्रतीक है। कवि ने संसार रूपी महासागर की विकरालता-भयंकरता का स्पष्ट चित्र दे दिया है ।
आत्माभिव्यंजक प्रतीकों में हंस, चेतन, नायक, शिवदासी, भीत, पंखी, मछली, जौहरी, वूद, भ्रमर, तवीव, आदि प्रतीक प्रधान है । इन कवियों ने इन प्रतीकों द्वारा आत्मा के विभिन्न रूपों की अभिव्यक्ति की है। हंस और पंखी उस आत्मा के प्रतीक है जो प्रथम संसार की रमणीयता से आकर्षित होते हैं पर समय पाकर उससे विरक्त हो साधना-मार्ग द्वारा निर्वाण को प्राप्त होते है । किगनदास, जिनहर्प, यशोविजयजी, धर्मवर्द्धन, ब्रह्म अजित आदि कवियों ने आत्मा की इसी अवस्था की अभिव्यक्ति हंस२ तथा पक्षी३ प्रतीक द्वारा की है । चेतन, नायक, शिववासी आदि प्रतीक द्वारा शक्तिशाली आत्मा का विश्लेषण किया गया है। अपनी वास्तविकता का ज्ञान होते ही ऐसी आत्मा रागद्वेषादि से मुक्त हो अपने शुद्ध स्वरूप में प्रकाशित हो जाती हैं । ज्ञानानन्द, आनंदघन, यशोविजयजी आदि ने इस प्रतीक का खुलकर प्रयोग किया है। कुमुदचंद्र ने भी "चेतन" प्रतीक के प्रयोग द्वारा आत्मा को चेताया है ।४ ज्ञानानन्द ने प्रवुद्ध आत्मा के लिए "जवहेरी" "शिववासी" पंखी". 'वन्द' आदि प्रतीकों का प्रयोग किया है ।५ विनय विजय ने आत्मा और परमात्मा के संबंध को अभिव्यक्त करने के लिए "जल-मीन सम्बन्ध" तथा "जल-बूद का न्याय" १. भक्ताभर सवैया, आनन्दवर्द्धन, प्रस्तुत प्रवन्ध का तीसरा अध्याय । २. हसा तू करि संयम, जन न पड़ि संसार रे हंसा ।-हंसागीत, ब्रह्म अजित । ३. वह पंखी को जो कोई जाने, सो ज्ञानानन्द निधि' पावे रे। भजनसंग्रह, धर्मामृत;
पृ० १६ । ४. चेतन चेतत किउ वावरे । हिन्दी पद संग्रह, डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल । ५. मजन संग्रह, धर्मामृत, पं० वेचरदास, ज्ञानानंद के पद, नं० १६, २४, २७ ।