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भूमिका खण्ड
विषय प्रवेश १. प्रस्तुत विषय के चयन की प्रेरणा, नामकरण और महत्त्व
प्रेरणा :
जैनों के तीर्थधाम और साहित्य केन्द्र पाटण को आजीविका हेतु अपना कार्य क्षेत्र बनाने पर यहाँ के जैन भण्डारों और उसमें संगृहीत अनेक ग्रन्थ-रत्नों को देखने का सुयोग प्राप्त हुआ। जिज्ञासा बढ़ी, अध्ययन में प्रवृत्त होने पर पता चला कि गुजरात के अनेक जैन कवियों ने हिन्दी में रचनाएँ की हैं जो प्रायः अभी तक उपेक्षित एवं अनात हैं। गुजराती कृतियों पर तो गुजरात के विद्वानों ने गवेषणात्मक कार्य किया पर हिन्दी कृतियाँ अछूती ही रहीं। इधर डा० अम्बाशंकर नागर अपने अधिनिबंध- "गुजरात की हिन्दी सेवा" द्वारा क्षेत्रीय अनुसंधान की एक नई दिशा तो सूचित कर ही चुके थे। इस प्रकार प्रस्तुत शोध-कार्य में प्रवृत्त होने की प्रेरणा बलवती होती गई। -
___ तदनन्तर इस प्रदेश मे प्राप्त हिन्दी में रचित जैन-साहित्य व तत्सम्बन्धी समीक्षा को देखने से यह विश्वास और भी दृढ़ हो गया कि भाषा और भावधारा की दृष्टि से इस साहित्य का अभी तक वैज्ञानिक स्तर पर साहित्योचित मूल्यांकन नहीं हो सका है। गुजरात में मूल्यांकन का जो प्रयास किया भी गया है, उसमें विपुल समृद्ध जैन साहित्य की अनेकानेक अमूल्य हिन्दी कृतियां, विद्वानों की उपेक्षा के कारण, अभी तक अस्पृष्य रही हैं। शोधपरक साहित्योचित मूल्यांकन का अभाव तथा यह अस्पृष्टता भी मेरे शोधप्रबंध की प्रेरणा की मूल रही हैं। नामकरण :
प्रस्तुत प्रबन्ध का नामकरण करते समय कुछ और भी विकल्प समक्ष थे, यथा- "गुजरात के जैन कवियों की हिन्दी साहित्य को देन", "गुजरात के जैन कवियों की हिन्दी सेवा", "जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता" आदि । “जन गुजराती कवियों" की जगह श्री मो० ८० देसाई द्वारा प्रयुक्त "जैन गुर्जर कवि" प्रयोग मुझे अधिक पसन्द आया क्योंकि गुजरात का नामकरण मूल गुर्जर जाति के आधार पर ही हुआ है तथा यहाँ “गुर्जर" शब्द स्थान वाचक ( गुजरात प्रांत ) अर्थ में ही प्रयुक्त हुआ है अर्थात् ऐसा कवि जो जैन हो और गुजरात प्रदेश से भी संपति हो।
"जैन गुर्जर कवियों की' हिन्दी सेवा" अथवा "हिन्दी साहित्य को देन" जैसे