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जैन गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता
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"राजुल गेहे नेमि आय ।। हरि वंदनी के मन मायं, हरि को तिलक हरि सोहाय ॥राजुल०॥ कंवरी को रंग हरी, ताके संग सौहे हरी, तां टंक को तेज
हरि दोई श्रवनि ।
सकल हरि अङ्ग करी, हरि निरखती प्रेम भरी ।
तन नन नन नीर, तत प्रभु अवनी ।।"१
कवि समयसुन्दर ने भी नेमीश्वर और राजुल को लेकर अनेक पदों का निर्माण किया है । राजमती के शब्दों में भक्तहृदय की तन्मयता और तीव्र अनुराग के भाव मुखरित हो उठे हैं___ "मिलतां सु मिलीयै सही सुपियारा हो,
जिम वापीयडो मेह; नेम सुपियारा हो। पिउ पिउ शब्द सुणी करी सुपियारा हो, - आय मिले सुसनेह, नेम सुपियारा हो ॥४॥ हूँ सोनी नी मुंदडी सुपियारा हो,
तू हिव हीरो होय, नेम सुपियारा हो। सरिखइ सरिखउ जउ मिलइ मुपियारा हो, " तउ ते सुन्दर होय; नेम सुपियारा हो ॥५॥"२
राजुल के वियोग में 'संवेदना' के स्थल अधिक हैं । कवि ने राजुल के अन्तस्थ विरह को स्वाभाविक वाणी दी है । एक उदाहरण द्रष्टव्य है--
"सखि मोउ मोहनलाल मिलावइ ।स। दधि सुत बन्धु सामि तसु सोदर, तासु नंदन संतावइ ॥१॥स० वृषपति सुत वाहन तसु वालिम, मण्डन मोहि डरावइ । अगनि सखारिपु तसु रिपु खिणु खिणु, रवि सुत शब्द सुणावइ ।स०। हिमगिरि तनया सुत तसु वाहन, तास भक्षण मोहि भावइ ।
समयसुन्दर प्रभु कु मिलि राजुल, नेमि जिणद' गुण गावइ ।३।स।"३ १. हिन्दी पद संग्रह, संपा० कस्तूरचन्द कासलीवाल, पृ० ८ । २. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, संपा० अगरचंद नाहटा, 'श्रीनेमि जिन स्तवन',
पृ० ११५। ३. वही, श्री नेमिनाथ गूढा गीतम्, पृ० १२८ । ।