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________________ जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता १३७ इनके मुख्य विहार के स्थान सूरत, खंभात, राजनगर, पाटण, राधनपुर, सादडी, धागेराव, सिरोही, पालीताणा, जुनागढ आदि रहे। श्री महोपाध्याय विनयविजय जी, यशोविजय जी तथा पं० ऋद्धिविमलगणि आदि ये प्रायः साथ-साथ विहार करते थे । श्रीमद् देवचंद जी से भी इनका घनिष्ट संबंध रहा है। इन्होंने सिद्धाचल की यात्रा अनेक वार की थी। अनेक साधुओं को दीक्षा दी, उन्हें वाचक पद और पंडित पद से विभूषित भी किया। खंभात में ८६ वर्ष की आयु पूरी कर संवत् १७८२ आश्विन वदी ४, गुरुवार की प्रातः अनशन पूर्वक ये स्वर्गधाम सिधारे। आप संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी और गुजराती आदि सभी भाषाओं में सिद्ध-हस्त थे। इन्होंने इन सभी भाषाओं में सफल काव्य रचना की है । ___ इन्होंने गुजराती में विपुल साहित्य की सर्जना की है। 'प्राचीन स्तवन रत्न संग्रह' की भूमिका में इतके कुल ग्रन्यों की संख्या २५ से भी अधिक बताई है। तदुपरात. स्तवन. स्तुति. पदादि की संख्या तो काफी बढ़ गई है। ३६०० स्तवन इनके रचे वताये गये है और उनके रचित ग्रन्थों का श्लोक प्रमाण पत्रास हजार है ।१ गुजराती में इनके अनेक रासादि ग्रन्थ भी मिलते हैं। हिन्दी में भी इनकी मुक्तक रचनायें स्तवन, गीत, सज्झाय पद आदि विपुल संख्या में प्राप्त हैं । इनकी प्राप्त हिन्दी रचनायें 'प्राचीन स्तवन रत्न संग्रह' भाग १, और में २ में संग्रहीत हैं। इनकी एक हिन्दी रचना 'कल्याण मन्दिर स्तोत्र गीत'२ भी है। ज्ञानविमलसूरि की गद्य रचनाएँ भी प्राप्त हैं। सूरि जी एक सफल कवि, भक्त, अध्यात्म तत्व विवेचक, उपदेशक तथा सिद्धहस्त गद्यकार थे। सूरिजी के गीत, स्तवन, स्तुतियाँ तथा पद विभिन्न राग-रागनियों में तथा देगियों में निबद्ध संगीतशास्त्र के अनुकूल हैं। कवि ने संगीत का भी गहरा अभ्यास किया था 'कल्याणमंदिर स्तोत्र गौत' से एक उदाहरण द्रष्टव्य हैकुशल सदन जिन, मावि भवभय हरन, अशरन शरन जिन, सुजन वरनत है। भव जल राशि भरन, पतित जन तात तरन, प्रवहन अनुकरन, चरन सरोज है ॥" कवि की पद रचना वड़ी ही सरल और प्रभावशाली है। उनके एक प्रसिद्ध पद को कुछ पंक्तियाँ देखिये१. श्री ज्ञानविनलसूरिश्वर रचित प्राचीन स्तवन रत्न संग्रह भाग १ । २. 'श्री ज्ञानविनलमूरिश्वर रचित प्राचीन स्तवन संग्रह', भाग १ ।
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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