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________________ जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता १२७ ___ कवि की विभिन्न कृतियों के अवलोकन से देश्य भाषा का प्राचीन रूप तथा हिन्दी का विकसित रूप स्पष्ट परिलक्षित होता है । भापा बड़ी सरल तथा प्रासादिक है । विभिन्न भाषा प्रयोग की दृष्टि से कवि या 'हीरविजयसूरि रास' विशेष उल्लेखनीय है। प्रसंगानुकूल और भावानुकूल भाषा संयोजन की उत्तम कला इसमें दिखाई देती है । वादशाह के पश्चाताप का एक प्रसंग द्रष्टव्य है “पहिले में पापी हुआ बोहोत, आदम का भव युहीं खोत, . चित्तोड़ गढ़ लीना में आप, कह्या न जावे वो महापाप । जोरन मरद कुत्ता वी हण्या, अश्व उकांट लेखे नहिं गणया, ऐसे गढ लीने में बोहोत, बड़ा पाप उहां सही होत ।" उर्दू निष्ट कविता का एक और उदाहरण अवलोकनीय है "या खुदा मिबडा दोजखी, कीनी वोहोत बुजगारी; इस कारणी थी बीहस्त न पाऊँ, होइगी बोहोत खोआरी ॥६६॥" इस प्रकार के अनेक हिन्दी-उर्दू निष्ठ प्रसंग कवि की विभिन्न रचनाओं में विशेषतः 'हीरविजयसरि रास' में प्राप्त होते हैं। संभव है खोज करने पर कवि की कोई स्वतंत्र हिन्दी रचना भी प्राप्त हो जाय । कनक कीति : (१७ वीं शती का अन्तिम चरण) खरतर गच्छीय प्रसिद्ध आचार्य जिनचन्द्रसूरि की परम्परा में जयमंदिर के शिष्य १ कनक कीति का कोई जीवनवृत्त उपलब्ध नहीं होता। इनकी काव्यकृतियों हिन्दी तथा गुजराती-दोनों भापाओं में रची गई प्राप्त होती हैं। इनकी हिन्दी कृतियों में गीत, स्तुति, वंदना, सज्झाएँ आदि हैं। ये सब भगवान तथा किसी ऋपि की स्तुति अथवा वंदना में रचित कृतियाँ हैं। इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं-'भरतचक्री सजझाय' (भक्ति-काव्य), 'मेघकुमार गीत' (वंदना), 'जिनराज स्तुति', 'विनती', 'श्रीपालस्तुति', 'कर्मघटावली' 'भक्तिकाव्य' तथा स्फुट भक्तिपद । इनकी भाषा के अनेक रूप प्राप्त होते हैं, यथा-ढूढारी से प्रभावित ( जहां 'है' के स्थान पर 'छै' का प्रयोग है ), गुजराती से प्रभावित, मारवाड़ी, व्रज के समीप तथा खड़ी बोली । खड़ी बोली का एक उदाहरण दृष्टव्य है "तुम प्रभु दीनदयालु, मुझ दुषि दुरि करोजी। लीज अनंतन ही तुम ध्यान धरों जी ॥" १. जैन गुर्जर कविओ, भाग, पृ० ५६८ ।
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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