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आदिमुनि भगवान ऋषभदेव के प्रति
( लक्ष्मोचन्द्र जैन 'सरोज', जावरा )
ऋषभदेव किसका न देवता, जैनधर्म न किसका है ? जो उदार चेता वह कहता; देव-धर्म यह सवका है ॥
सत्य प्रथम श्री ऋषभदेव ने, अपनी सबकी आँखें खोलीं । जीना सिखलाया दिये कला; असि मसि - कृषि - शिल्प-वनिज वोली ॥ भोग भूमि सा कर्म भूमि पर भी अपना अधिकार बताया । ध्वंस झंझटों को कर सत्वर; स्वावलम्व सत्कार सिखाया ||
कल्पलता अन्तर्तृ ष्णा से, होता संघर्ष न किसका है ? जो उदार चेता वह कहता, यह संघर्ष सभी का है ॥
तपो भूमि की आत्म साधना में त्याग भोग से बढ़ देखा । कार्यों के उत्तुंग शिखर पर चढ़ जीवन को उज्ज्वल लेखा || जीवन दिया श्रमरण संस्कृति को आचरणों को दी वाणी । अनुपम ज्ञानामृत वितरण कर विकसित की दश दिशि में वारणी ||
आध्यात्मिकता सत्य समीक्षा, यह अधिकार न किसका है ? जो उदारचेता वह कहता, यह अधिकार सभी का है ॥
सत्य दिगम्बर ओ श्वेताम्बर मात्र न इसके अधिकारी हैं । बल्कि बौद्ध - हिन्दू ईसाई मुस्लिम खग- पशु नर-नारी हैं ॥ जीवन है कुन्दन सा जिसका, वह क्या ग्राव ताव देखेगा ? चरित चन्द्र सा निर्मल जिसका, वह क्या भेद भाव लेखेगा ?
सत्य सनातन का दर्शन, स्थाई उत्कर्ष न किसका है ? जो उदार चेता वह कहता, यह तो भाई सभीका है ॥