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प्राचीन प्राचार्य परम्परा
[ ३७ ऐसे एक नहीं अनेकों उदाहरण हैं और वर्तमान में भी इस पुरातत्व की वृद्धि उसी प्रकार हो रही है । 'धर्मस्थल, फिरोजाबाद की विशालकाय मूर्तियों में एलाचार्य मुनिश्री विद्यानंदजी की जो प्रेरणा रही है वह पुरातत्व के. इतिहास में एक विशिष्ट अध्याय बनेगा। चातुर्मास के समय जिन स्थानों पर ये संत रहे, रहते हैं वहाँ कितनी प्रगति होती है किसी से छिपी नहीं । मध्यभारत के पिछड़े तीर्थों के 'विकास में ज्ञान संत प्राचार्य विद्यासागरजी का योगदान तीर्थों के विकास में एक महत्वपूर्ण मील के पत्थर के रूप में स्मरणीय रहेगा । इन प्राचार्यों की प्रेरणा से ही कला का अत्यधिक विकास हुआ
और श्रावकों ने कलाकारों का सम्मान किया। समन्वय एवं सर्वधर्मसमभाव
सर्वधर्मसमभाव में मुनिवरों का विशेष योगदान रहा है। किसी भी धर्म का कोई भी छोटा या बड़ा व्यक्ति मुनि के लिये समान है । मुनिवरों के उपदेश मानव मात्र के लिये हैं अपनी सभाओं में विभिन्न धर्मावलम्बियों को एकत्र कर एलाचार्य श्री ने जैनधर्म को विश्वधर्म के रूप में प्रतिष्ठित कर अनोखा कार्य किया है । जैनाचार्यों के जीवन, तप, त्याग से ही प्रभावित होकर अन्य अनेक मतावलंबी जैन धर्म के प्रति आकृष्ट हुये । राधाकृष्णनजी की जैनधर्म पर रुचि इतिहासकारों के लिये भी प्रेरणा स्रोत बनीं । श्री लालबहादुर शास्त्रीजी ने प्राचार्य श्री देशभूषणजी महाराज से' आशीर्वाद प्राप्त किया और सर्व श्रेष्ठ प्रधानमन्त्री के रूप में छवि छोड़ गये। समन्वय का साक्षात् उपदेश देते हुये 'मनुष्य जन्म से नहीं कम से महान होता है' की बात कह कर कुल के स्थान पर . कर्म को महत्व देकर वर्ग विभेद को समाप्त करने की ओर प्रकाश डाला गया।
हृदय परिवर्तन :
___ गंजकुमार सुकुमाल सुकौशल भवसेन भावसेन जैसे अनेकों उदाहरण आगम में भरे पड़े हैं. जहां मुनिवरों की प्रेरणा से उस व्यक्ति का हृदय ही परिवर्तित हो गया, जीवन ही बदल गया। अतीत ही नहीं वर्तमान में भी यह कार्य सतत् जारी है, इसके साक्षात् उदाहरण हैं आचार्य धर्मसागरजी जिन्होंने पट्टाचार्य पदासीन होते ही उसी दिन ११ दीक्षायें दी और आज तक लगभग ५० व्यक्ति अपना जीवन परिवर्तित कर धर्मसागर से धर्म के सागर में डुबकी लगा चुके हैं। पर्यटन, सारे देश को एक सूत्र में बांधना । .
जैन दर्शन में तीर्थयात्रा का विशेष महत्व रहा है। ये यात्रायें प्रायः आचार्यों के संघ सान्निध्य में होती रही हैं। वर्तमान में प्रातःस्मरणीय प्राचार्य श्री शांतिसागरजी की संघ यात्रा ऐतिहासिक
॥ चुकाह।
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