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प्राचीन ग्राचार्य परम्परा . भगवान का वैराग्य और दीक्षा महोत्सव :
किसी समय सभा में नीलांजना के नृत्य को देखते हुए वीच में उसकी आयु के समाप्त होने से भगवान को वैराग्य हो गया । भगवान ने भरत का राज्याभिषेक करके इस पृथ्वी को भारत' इस नाम से सनाथ किया और बाहुबली को युवराज पद पर स्थापित किया। भगवान महाराज नाभिराज आदि को पूछकर इन्द्र द्वारा लाई गई 'सुदर्शना' नामक पालकी पर आरूढ़ होकर 'सिद्धार्थक' वन में पहुंचे । और 'ॐ नमः सिद्ध भ्यः' मन्त्र का उच्चारण कर पंचमुष्टि केशलोंच करके सर्व परिग्रह रहित मुनि हो गये । उस स्थान की इन्द्रों ने पूजा की थी इसीलिये उसका 'प्रयाग' यह नाम प्रसिद्ध हो गया । उसी समय भगवान ने छह महीने का योग ले लिया। भगवान के साथ आये हुए चार हजार राजाओं ने भी भक्तिवश नग्न मुद्रा धारण कर ली।
पाखंड मत की उत्पत्ति :
भगवान के साथ दीक्षित हुए राजा लोग दो-तीन महीने में ही क्षुधा तृषा आदि से पीड़ित होकर अपने हाथ से वन के फल आदि ग्रहण करने लगे इस क्रिया को देख वन देवताओं ने कहा कि मूर्तों ! यह दिगम्बर वेष सर्वश्रेष्ठ अरहंत, चक्रवर्ती आदि के द्वारा धारण करने. योग्य है । तुम लोग इस वेष में अनर्गल, प्रवृत्ति मत करो। यह सुनकर वे लोग भ्रष्ट तपस्वियों के अनेकों रूप बना लिये, वत्कल, चोवर, जटा, दण्ड आदि धारण करके वे परिव्राजक आदि बन गये । भगवान वृषभदेव का पौत्र मरीचिकुमार इनमें अग्रणी गुरु परिव्राजक बन गया। ये कुमार आगे चलकर अन्तिम तीर्थकर महावीर हुए हैं।
भगवान का आहार ग्रहण :
___ जगद्गुरु भगवान छह महीने वाद आहार को निकले. परन्तु चर्याविधि किसी को मालूम न होने से छह माह और व्यतीत हो गये एक वर्ष बाद भगवान कुरुजांगल देश के हस्तिनापुर नगर में पहुंचे । भगवान को आते देख राजा श्रेयांस को पूर्व भव के स्मरण हो. जाने से राजा सोमप्रभ और. श्रेयांसकुमार दोनों भाइयों ने विधिवत् पड़गाहन आदि करके नवधाभक्ति से भगवान को इक्षुरस का आहार दिया। वह दिन वैशाख शुक्ला तृतीया का था जो आज भी 'अक्षयतृतीया' के नाम से. प्रसिद्ध है।