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दिगम्बर जैन साधु
मुनि श्री ज्ञानभूषणजी महाराज द्वारा
दीक्षित शिष्य
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आर्यिका सरस्वतीमतीजी
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आर्यिका सरस्वतीमती माताजी
१०५ आ० श्री सरस्वतीमती माताजी का जन्म डबका गाँव में हुआ | आपके पिता का नाम गुलालजी व माता का नाम मणिबाई था । आपका जन्म नाम अंगूरीबाई रक्खा जैसे अंगूर अन्दर से नरम और ऊपर से भी नरम होता है वैसे ही माताजी का स्वभाव भी सरल प्रकृति का है। स्कूली शिक्षा नहीं मिलने पर भी आपने एक एक अक्षर स्वतः ज्ञात करके सीखा अपनी दैनिक क्रिया व स्वाध्याय अच्छी तरह करती हैं । अल्पायु में ही विवाह जतवारपुरा में हो गया । आपके पति का नाम खुशीलालजी था । शादी के सात वर्ष पश्चात् ही पति का वियोग हो गया । आपके दो पुत्र हुये उनका सर्व भार आपके ऊपर आगया । बच्चों की पढ़ाई लिखाई शादी करने के पश्चात् आपने प्रा० विमलसागरजी महाराज से दूसरी प्रतिमा के व्रत ले लिये। घर में रहकर व्रतों का पालन किया । चार महिने पश्चात् ही कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी के दिन लश्कर में हो सीमन्धर महाराज से सप्तम प्रतिमा ली। परन्तु आपके मन में इससे सन्तोष नहीं मिला और वैराग्य भाव की वृद्धि हुई तो सं० २०३२ में ज्ञानभूषणजी महाराज से अहमदाबाद में बैसाख शुक्ला चतुर्दशी को आर्यिका दीक्षा ली ! अब आप हर वक्त धर्म ध्यान में लवलीन रहती हुई अपना समय व्यतीत करती हैं आपका ध्यान उपवास आदि में विशेष रहता है बेला-तेला हर समय करती रहती हैं । धर्म-ध्यान पूर्वक इसी प्रकार समय व्यतीत करें यही हमारी भावना है ।
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