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दिगम्बर जैन साधु तीन महीने बाद ऐलक दीक्षा ली । सं० दो हजार में कोटा. नगर में विजयसागरजी के साथ चातुर्मास किया और उसी समय दिगम्बर मुनि दीक्षा ग्रहण की। आपका नाम विमलसागरजी रक्खा गया। तपः साधना के कीर्तिमान पुरुषार्थी सन्त शिरोमणि मुनिराज हैं।
क्षुल्लक श्री ज्ञानानन्दसागरजी महाराज
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संसार में सब कुछ परिवर्तित हो जाता है परन्तु विराग का संस्कार लम्बी प्रक्रिया से भले गुजरे मिटता नहीं है पर संस्कार हो विराग का हो । अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी स्व० पू० श्री १०८ ज्ञानसागरजी महाराज की परम्परा में पू० आ० श्री विद्यासागरजी म. द्वारा भला जिस जीव को विराग से संस्कारित किया गया हो उसकी महानता के बारे में कहना ही क्या ! श्री सोहनलालजो छाबड़ा, टोडारायसिंह (राज.) उन उत्तम महापुरुषों में से एक हैं जिन्हें ऐसे
तपस्वी आचार्यों की सत्संगति मिली। सं० १९९१ में श्री सुन्दरलाल जैन के घर में आपका जन्म हुआ। माता धापूबाई ने जन्म से ही धार्मिक संस्कारों में आपकी गहरी रुचि जाग्रत कर आपको उत्तम श्रावक बनाने की दिशा में पहल की। कालान्तर में १० नवम्बर १९७६ में पू० श्री विजयसागरजी म. के चरणों का आश्रय पाकर आपने कुली ग्राम में क्षुल्लक दीक्षा का महान् व्रत धारण किया । गुरु परम्परा के अनुरूप आप ज्ञान प्रसार में अहर्निश संलग्न हैं।
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