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दिगम्बर जैन साधु
[५०५ बैलगोल में रास्ते में मुनि श्री मुनिसुव्रतसागर महाराज से महन्तपुर महाराष्ट्र में मिला। तभी से दक्षिण एवं श्रवणबेलगोल की यात्रा करके आप हाल में श्री सिद्धक्षेत्र गिरनार में चातुर्मास कर रहे हैं । अभी तक आपने सिद्धक्षेत्र की २५१ वंदना सम्पन्न कर ली है । हाल में आप आचार्य श्री निर्मलसागरजी महाराज के साथ रहकर आत्म कल्याण में लगे हैं।
मुनिश्री निर्वाणसागरजी महाराज
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___ आपके पिताजी थे जगाती कुलभूषण श्री रामप्रसादजी आपकी माताजी थी भूरीबाई । दोनों उत्तम प्रकृतिवाले थे । उन दोनों के स्वभाव का गहरा असर आप पर भी पड़ा । बचपन से ही आप जैनधर्म और उसके सिद्धांतों के प्रति श्रद्धान्वित थे । गृहस्थावस्था का आपका नाम
था कुन्दनलालजी। -
अठारह साल की उम्र में आपका
पाणिग्रहण-संस्कार हुआ चिन्जाबाई से जो -rec r : .... वमनी गांव (मध्यप्रदेश) की रहने वाली थी। दुर्भाग्य से शादी के बाद तीन वर्ष के भीतर ही चिन्जाबाई के प्राणपखेरू उड़ गये । होनहार को कौन रोक सकता है।
पश्चात् आपके धर्म-रत पिताजी का भी स्वर्गवास हो गया एवं आपकी माताजी का भी।
आप सांसारिक-लौकिक बंधनों से मुक्त हो गये। घर में रहते हुए भी आप, जैसे पानी में रहते हुए भी कमल पानी से अलिप्त रहता है, वैसे विकथाओं से अलग रहकर निर्ममत्व भाव से अपना कालयापन करते थे।
त्याग के सोपान पर! आपने ४६ वर्ष की उम्र में मुनि श्री १०८ निर्मलसागरजी से क्षुल्लकदीक्षा अंगीकार की । दीक्षा-स्थल था कुण्डलपुर जिला दमोह (मध्यप्रदेश)।