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दिगम्बर जैन साधु लगा । सप्ताहों ने महीनों और महीनों ने वर्षों का रूप ले लिया। शैशव बीतने लगा और उम्र के चरण यौवन की ओर बढ़ने लगे। चिन्तातुर पिता ने योग्य घर-वर देखकर आमगांव निवासी श्री सिंघई छदामीलालजी के साथ विवाह कर दिया । गृहस्थ जीवन सुख पूर्वक बीतने लगा । घर समृद्ध . था, परिवार भरा पूरा था । संसार का जाल काल रूपी मकड़ी ने बुनना प्रारम्भ कर दिया । मातृत्त्व, सजग हो उठा । वर्षानुक्रम से योग्य समय में संख्या बढ़ने लगी। दो लड़के एवं चार बच्चियों की मां अपने घर आंगन में किलकारी मारते, हंसते मुस्कराते फूलों को देखकर फूली नहीं समाती थी, किन्तु काल की गति विचित्र है। विधि का विधान अमिट है । जन्म के साथ मृत्यु छिपी चली आई है। .. पतिदेव काल के अतिथि बन गये । खुशियां दुःख में बदल गई । जीवन में उदासी आने लगी । समय पाकर छिंदवाड़ा में आपने प्रायिका धर्ममति माताजी से सप्तम प्रतिमा के व्रत ग्रहण कर लिये । जीवन अव धर्म की शरण में पहुंच गया । संसार की वास्तविकता ने उन्हें जगा दिया और मुनि श्री सुमतिसागर ( मोरेना ) से क्षुल्लिका दीक्षा ले ली। तीन वर्ष तक आचार्य श्री के साथ रहकर इस पद के योग्य समस्त विधि विधान का अध्ययन एवं आचरण किया । अब सुविधानुसार कभी स्वतन्त्र ... रूप से, कभी किसी संघ के साथ विचरण करती हुई कल्याण पथ पर बढ़ रही हैं ।
क्षुल्लिका विद्यामती माताजी
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... [ परिचय अप्राप्य ] .