________________
दिगम्बर जैन साधु
मुनि श्री पार्श्वसागरजी महाराज
श्री १०८ पार्श्वसागरजी महाराज का जन्म तहसील फिरोजाबाद में जिला आगरा उत्तरप्रदेश में शुभमिती कार्तिक सुदी २ को विक्रम संवत् १६७२ में हुआ था उनका जन्म अग्रवाल वंश गर्ग गोत्र में हुआ था । उनके गृहस्थ श्राश्रम का नाम रामगोपाल अग्रवाल जैन था। उनके पिताजी का नाम प्यारेलालजी जैन था और माताजी का नाम द्रोपदी बाई अग्रवाल जैन था । उनकी माता का स्वर्गवास दिनांक १५ - १ - १९४२ में हुआ और पिताजी का कार्तिक सुदी १५ दिनांक ११-११-१६२ में हुआ पिताजी के स्वर्गवास के बाद उन्होंने मन्दिर का कार्य अपने जुम्मे रखा।
[ ४८७
बचपन से उनकी रूचि धार्मिक कार्य में बहुत थी। उनका मुख्य कर्तव्य देवपूजा, व्रत उपवास शास्त्र स्वाध्याय और तीर्थ यात्रा करना ही थी । उन्होंने ४ कक्षा तक अभ्यास किया ।
सन् १९३३ में उनकी शादी धोलपुर निवासी लाला गंगारामजी की पुत्री रामश्रीदेवी के साथ हुई। शादी के बाद बहुत लम्बे समय में एक पुत्र हुआ ।
बहुत समय के बाद पत्नी और पुत्र को छोड़ वैराग्य हुआ उस समय पुत्र मुन्नालाल २१
साल का था ।
मार्च १९६६ में श्री १०८ मुनि श्री सुमतिसागरजी और श्री १०८ मुनि श्री ज्ञानसागरजी फिरोजाबाद श्राये तब उनको वैराग्य भाव हुआ । तब उन्होंने पूज्य श्री १०८ प्राचार्य सुमतिसागरजी से दिनांक ३१-३-६६ चैत्र सुदी १३ सोमवार वीर संवत् २४१५, विक्रम सं० २०२६ के दिन दिगम्बर जैन नशियांजी फिरोजाबाद में दो प्रतिमा के व्रत और आजीवन ब्रह्मचर्यं लिया। उनकी धर्मपत्नी ने भी जीवन पर्यन्त ब्रह्मचर्यं लिया । मुनि श्री के साथ सम्मेदशिखर यात्रा को गये । अषाढ़ सुदीप सोमवार विक्रम सं० २०२६ वीर सं० २४१५ दिनांक २३ - ६-६६ में आचार्य श्री के पास बाराबंकी में सातवीं प्रतिमा ली। फिर घर आये । कुछ दिन बाद यात्रा को गये वहाँ गुरु सुमतिसागरजी मिल गये । वहां विक्रम सं० २०२८ असोज सुदी ८ सोमवार तारीख २७-६-१९७१ के दिन दि० जैन थूवनजी में ऐलक दीक्षा ली तथा श्री १०५ ऐलक शीतलसागरजी नाम धारण किया ।
फिर वी० सं० २५००, विक्रम सं० २०३१ वैसाख बदी २ सोमवार देई ग्राम जिला बूंदी ( राजस्थान ) पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में भगवान के तपकल्याणक के दिन गुरु के पास मुनि दीक्षा ली तथा नाम पार्श्वसागर रखा ।