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दिगम्बर जैन साधु .. ....... . मुनि श्री श्रेयांससागरजी महाराज
आपका जन्म महाराष्ट्र राज्य के अन्तर्गत मुकाम-तहसील जिला वर्धा ग्राम में - तारीख ३१-१२-१९२० में हुवा। आपकी जन्म भूमि वर्धा ( महाराष्ट्र ) है आपका नाम रत्नाकर हिरासावजी चवड़े दिगम्बर जैम हैं आपके . पिताजी का नाम श्री हिरासावंजी जिनदासजी चवड़े तथा माता का नाम पार्वती- .. बाईजी है । आपका छापाखाने का धंधा ।
नागपुर में था। आपकाछोटा भाई सुभाषचंद चवड़े हैदराबाद में प्रेस चलाता है । आपको एक लड़की है, उसका नाम विजयावाई धोपाड़े है । आपकी भाषा मराठी है । अभी आपकी उमर ५६ साल की है । कारंजा में आपने २ प्रतिमा १९६२ में ली थी और छठी प्रतिमा चापानेर में १९६५ में धारण की, सप्तम प्रतिमा ब्रह्मचर्य की श्री १०८ मुनि सुमतिसागरजी महाराज से भागलपुर में तारीख २-११-७० को ग्रहण की उसके बाद ब्रह्मचारी अवस्था में १९७२ में ईडर ( गुजरात में ) चातुर्मास किया । उसके बाद आप गुरु के पास पारा गये और वहां गुरु १०८ श्री सुमतिसागरजी महाराज से १० दसवीं प्रतिमा तारीख १४-१२-७२ वार गुरुवार को मिती मार्गशीर्ष ६ को धारण की, नाम रत्नसागरजी रहा, फिर आपने गुरु के आदेश से शिखरजी आदि तीर्थों की यात्रा दक्षिण भारत, मध्यभारत, बिहार, उत्तर भारत आदि प्रदेशों में जो भी सिद्ध क्षेत्र, अतिशय क्षेत्र और निर्वाण क्षेत्र हैं, उनकी यात्रा की । आपके दादाजी स्व० जिनदासजी नारायणजी चवड़े जैन इन्होंने अपने काल में जैन शास्त्रों का मुद्रण वर्धा प्रेस में किया था।
आप गृहस्थ अवस्था में जो कि श्रावक के षट् कर्म हैं, मुनियों को आहार दान दिया करते थे, गुरु की संबोधना से और सानिध्य से उपदेश से और आगम का निमित्त पाकर दृढ़ श्रद्धा बन गई और वैराग्य धारणा से मुनि बन गये । पहिले से ही धर्म की तरफ ज्यादा लगन थी।
आपकी मुनि दीक्षा शुभ मिति वैशाख बदी २ सोमवार तारीख ८-४-७४ को देई ग्राम (राजस्थान) में श्री १०८ मुनि सुमतिसागरजी महाराज द्वारा हुई । दीक्षा ग्रहण का नाम श्री १०८ मुनि श्रेयांससागरजी महाराज रखा गया।