________________
४]
प्राचीन आचार्य परम्परा खाने योग्य है क्या नहीं ? इत्यादि प्रार्थना के अनन्तर श्री नाभिराज ने कहा कि डरो मत । अव कल्पवृक्ष के बाद ये वृक्ष तुम्हारा ऐसा ही उपकार करेंगे । ये विषवृक्ष हैं इनसे दूर रहो। ये इक्षु के पेड़ हैं इनका दाँतों से या यंत्रों से रस. निकाल कर पीना चाहिए। उस समय प्रजा का हित करने से नाभिराज कल्प वृक्ष सदृश थे।
पूर्वभव का वर्णन : .
____ इसी जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत से पश्चिम की ओर विदेह क्षेत्र में एक 'गंधिल' नाम देश है। जो कि स्वर्ग के समान शोभायमान है । उस देश में हमेशा श्री जिनेन्द्र रूपी सूर्य उदय रहता है। इसीलिये वहाँ मिथ्यादृष्टियों का उद्भव कभी नहीं होता । इस देश के मध्य भाग में रजतमय एक विजयाई नाम का बड़ा भारी पर्वत है । उस विजयाध पर्वत की उत्तर श्रेणी में एक अलका नाम की श्रेष्ठ पुरी है । उस अलकापुरी का राजा अतिवल नाम का विद्याधर था, जिसकी मनोहरा नाम की पतिव्रता रानी थी। उन दोनों के अतिशय भाग्यशाली 'महावल' नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ।
किसी समय भोगों से विरक्त हुए महाराज अतिवल ने राज्याभिषेक पूर्वक अपना समस्त राज्य महावल पुत्र को सौंप दिया और आप अनेक विद्याधरों के साथ वन में जाकर दीक्षा ले ली। महावल राजा के चार मन्त्री थे जो महा बुद्धिमान, स्नेही और दीर्घदर्शी थे। उनके नाम-महामति, सभिन्नमति, शतमति और स्वयंबुद्ध थे। इनमें स्वयंवुद्ध सम्यग्दृष्टि शेष तीनों मिथ्यादृष्टि थे। किसी समय अपने जन्मगांठ के उत्सव में राजा महावल सिंहासन पर विराजमान थे। उस समय अनेकों . उत्सव, नृत्य, गान और विद्वद्गोष्ठियाँ हो रही थीं । अवसर पाकर स्वयंबुद्ध मन्त्री ने स्वामी के हित की इच्छा से जैन धर्म का मार्मिक उपदेश दिया। उसके वचनों को सुनने के लिये असमर्थ भूतवादी महामति मन्त्री ने चार्वाक मत को सिद्ध करते हुए जीव तत्त्व का अभाव सिद्ध कर दिया। वौद्धमतानुयायी संभिन्नमति मन्त्री ने विज्ञानवाद का आश्रय लेकर जीव का प्रभाव करना चाहा, उसने कहा-ज्ञान ही मात्र तत्त्व है और सब भ्रममात्र है । इसके बाद शतमति मन्त्री ने शून्यवाद का अवलम्बन लेकर सकल जगत् को शून्यमात्र सिद्ध कर दिया।
इन तीनों को वातें सुनकर स्वयंबुद्ध मन्त्री ने तीनों के एकान्त दुराग्रह को न्याय और आगम के द्वारा खण्डन करके सच्चे स्याद्वादमय अहिंसा धर्म को सिद्धि करके उन्हें निरुत्तर कर दिया और राजा को प्रसन्न कर लिया। इसके बाद किसी एक दिन स्वयंवुद्ध मन्त्री अकृत्रिम चैत्यालय को वन्दना के लिये सुमेरु पर्वत पर गया, वहाँ पहुँच कर उसने. पहले प्रदक्षिणा दी फिर भक्तिपूर्वक वार