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दिगम्बर जैन साधु
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हृदय में बहू की साध थी पर वह साध साध ही रह गई । राग पर विराग को विजय हुई और १० मई ६३ को जन्मा अरविन्द २ जून ८० को बुढ़ार (म० प्र०) में प्रा० श्री सन्मतिसागरजी म० के चरण कमलों में जा उपस्थित हुआ । पानी की धारा भी कहीं रुकती है । गुरु ने सद्ज्ञान से जानकर सुपात्र को क्षुल्लक दीक्षा प्रदान करने का निश्चय कर लिया। विशाल जनसमूह के समक्ष कैशलोंच की कठिन परीक्षा शुरू हुई । गुरु की गरिमा को बढ़ाने वाला अरविन्द सफल हुआ। प्रसन्नचित्त गुरु ने 'पूर्णसागर' नाम से प्रापको अभिहित करते हुए शिवपथ पर अग्रसर होने का आदेश दिया। तभी से आप स्वाध्याय में लीन होकर आत्म कल्याण कर रहे हैं।
क्षुल्लक श्री चन्द्रकीर्तिजी
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क्षुल्लक श्री चन्द्रकीतिजी
परिचय अप्राप्य