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दिगम्बर जैन साधु
[ ३५३ असह्य वियोग का दुःख तो बहुत ही हुआ पर उपाय क्या था भवितव्यता को कौन टाल सकता है ऐसा सोचकर आपने दुःख के वेग को कम किया । घर पहुंचे माता बहिन भाई सबको बिलखते दुःख से कातर देख स्वयं भी एक बार तो विचलित हो गये पर तुरन्त प्रकृतिस्थ हो परिवार को समझाया शांत किया तथा गांव में ही रहने लगे। गृहस्थी का सारा भार आप पर ही आगया था उसको आप वहन करने लगे। भाई बहिन सभी का विवाह आदि गृहस्थ सम्बन्धी कार्य सब आपको ही करना पड़ता था।
कुछ दिनों बाद आपकी माताजी का स्वर्गवास हुआ, इसके छः माह बाद ही आपकी पत्नी का भी स्वर्गवास हो गया आपके कोई संतति भी नहीं थी । यह सब देखकर आपके हृदय में बड़ा दुःख हुआ। लोगों ने पुनः विवाह के लिये प्रेरणा भी दी पर आपने अब आजीवन पर्यंत ब्रह्मचर्य व्रत का नियम ले लिया । अब आप संसार की वास्तविकता का विचार करने लगे और आत्म सुधार करने का अपने हृदय में दृढ़ निश्चय कर लिया।
उस समय सन् १९४२ में श्रवणबेलगोला में श्री गोमटेश्वर भगवान का महामस्तकाभिषेक होने वाला था, इस महाभिषेक महोत्सव को देखने के लिये पूज्य १०८ श्री महावीरकीतिजी महाराज ससंघ श्रवणबेलगोल पधारे थे । उस समय आपके भी भाव श्रवणवेलगोल जाने के हुये । तत्काल आप श्रवणबेलगोल पहुंचे गोमटेश्वर भगवान का दर्शन मिला, अभिषेक देखा तथा श्री मुनि संघ के भी दर्शन किये । वहां प्रतिदिन पूज्य आचार्य श्री महावीरकीर्ति महाराज का प्रवचन होता था आप उसे बड़े मनोयोग से प्रतिदिन सुनते। इस तरह श्रवणबेलगोल में जीवन में प्रथम बार आपको एक दिगम्बराचार्य के १० दिन तक लगातार प्रवचन सुनने का अवसर मिला इससे आपको बड़ी शांति मिली। इसके बाद आप अपने गांव लौट आये जहां किराने की दुकान कर गार्हस्थिक विधि का कार्य करने लगे । तभी से जहाँ जहाँ मुनि संघ का चातुर्मास होता वहां वहां पर आप जाते। मुनिराजों के प्रवचन सुनते ऐसा क्रम आपने बना लिया था।
सन् १९६७ में पुनः आप श्रवणवेलगोल महामस्तकाभिषेक देखने गये । इस समय यहां पर 'श्री पूज्य १०८ आचार्य देशभूषण महाराज का तथा श्री पूज्य आचार्य महावीरकीतिजी महाराज का
संघ विराजमान था । उभय प्राचार्यों के वहां नित्य प्रवचन होते जिन्हें सुनकर आप आत्म विभोर हो