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दिगम्बर जैन साधु आये और वहां पर अषाढ़ सुदी में १०-६-७० शनिवार को मुनि दीक्षा हुई और फिर चातुर्मास पूर्ण होने पर वहां से विहार करके पावागढ़ पहुंचे वहाँ से अहमदाबाद आये रास्ते में गणेशपुर में गुरु महाराज की समाधि कराई। वहां से उदयपुर खानियां में चार्तुमास किया फिर सम्मेदशिखर में चार्तुमास किया फिर खण्डगिरी उदयगिरी आकर पौष सुदी १४ को केश लोंच किया
और फिर वहां से विहार कर कटक आये वहां ३।। महीना रहे फिर १९७५ वैसाख बदी १३ को कलकत्ता को विहार किया फिर कलकत्ता में चातुर्मास की स्थापना हुई।
श्री महाराजजी का तप बहुत श्रेष्ठ है । पग पग पर कर्म पीछा कर रहे हैं फिर भी महाराज अपने तप को दृढ़ता पूर्वक पालन करते हुए मोक्ष के मार्ग की तरफ कदम बढ़ाते जा रहे हैं महाराजजी का बहुत ही सरल स्वभाव है और हर समय धर्म में लीन रहते हैं। समाज को आप जैसे मुनिराज पर महान गर्व है।
मुनिश्री वासुपूज्यसागरजी महाराज
आपका जन्म कार्तिक वदी १० सम्वत् १९८१ में ग्राम गढ़मोरा जिला गंगापुर (राजस्थान): में सेठ श्री छगनमलजी काला के यहां पर हुआ । अापका बचपन का नाम श्री कपूरचन्द एवं माता. का नाम मूलीबाई है । आपने सन् १९६४ में गृह त्याग दिया एवं क्षुल्लक दीक्षा ले ली। तदुपरान्त सन् १९७० में श्री १०८ प्राचार्य श्री महावीरकीर्तिजी महाराज से मांगीतुगी क्षेत्र पर मुनि दीक्षा ली। तबसे आपका नाम वासुपूज्यसागरजी हो गया। आप बहुत ही मृदुभाषी हैं। आपका अधिकतर समय धर्म ध्यान एवं अध्ययन में व्यतीत होता है । भिन्न-भिन्न स्थानों पर चातुर्मास करते हुए आप धर्म वृद्धि कर रहे हैं।