________________
दिगम्बर जैन साधु
[ ३४९ संसार सागर के कितने गुमराह व्यक्तियों का पथ प्रदर्शन किया । आज भी आप अपने ज्ञान के अक्षय भण्डार से लोगों को संतृप्त करते हुए उनको उचित मार्ग का निर्देशन करते हैं। आपका अलौकिक व्यक्तित्व अनुकरणीय है।
मुनिश्री सुधर्मसागरजी महाराज आपकी जन्म भूमि धरियाबाद है आपके पिताजी फतहचन्द कांजी हैं। कांजी दशाहुमण गोत्र वुद्ध श्वर है आपकी मातेश्वरी चम्पाबाई बोदावत मूलचन्दजी की लड़की थी उनकी दो सन्तानें हुई एक लड़की रूपाबाई और एक आप ( केसरीमल ) थे।
श्री केसरीमलजी का जन्म विक्रम सं० १९६६ में फाल्गुन वदी १० के दिन हुआ आपने चौथी कक्षा तक पढाई की । एक ब्राह्मण पन्नालाल जो कि गूबर गौड जाति के थे। उनके पास भक्तामरजी व मोक्ष शास्त्र पढ़े पापकी शादी विक्रम सं० १९८१ फाल्गुन बदी अष्टमी के दिन श्री चन्दाबत चुन्नीलालजी मोतीलालजी की सुपुत्री रूपारीबाई के साथ हुई जो कि गामडी दशा हुमण जैन जाति की थी उसकी कोख से तीन लड़के व १ लड़की उत्पन्न हुये उनके नाम हैं । भँवरलाल, बालचन्द्र और एक छोटी लड़की का नाम कान्तादेवी है आप अपनी आजीविका गल्ले व परचूनी की दुकान से चलाते थे।
गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुये भी आपका मन सदैव संसार से विरक्त रहा। . सांसारिक प्रलोभन आपकी आत्मा को जरा भी विचलित न कर सके।
सं० २०१६ को कार्तिक सुदी में १००८ श्री सिद्धचक्र विधान मुगाणे में आपने करवाया आपने वहां पर सभा में धर्मोपदेश के बीच तीन हजार जनता की साक्षी में श्री १०५ क्षुल्लक धर्मसागरजी से पहली प्रतिमा ली। सं० २०१७ में श्री १०८ वर्द्ध मानसागरजी महाराज से छठी प्रतिमा के व्रत लिये । सं० २०१८ में श्री १०८ मुनिराज आदिसागरजी महाराज से सातवीं प्रतिमा के व्रत लिये । फिर आपने श्री १०८ मुनिराज आदिसागर महाराज की समाधि में भाग लिया।
अापने श्री १०८ चारित्र चक्रवर्ती आचार्य महावीरकीतिजी महाराज से आसोज सुदी १० शनिवार को ११ बजकर १५ मिनिट पर. क्षुल्लक दीक्षा ली। और वहां से रवाना होकर गिरनार