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दिगम्बर जैन साधु आज से करीब २४ वर्ष पूर्व आर्यिका श्री धर्ममतीमाताजी का समागम हुआ । उन्हीं की प्रेरणा से आसाढ़ बदी १४ के दिन ग्राम कोछोर ( सीकर ) में आचार्य श्री शिवसागरजी महाराज से पांचवीं प्रतिमा के व्रत लिये । इसके बाद आचार्य श्री शिवसागरजी महाराज का चातुर्मास सीकर हुमा । इसी चार्तुमास की आषाढ़ सुदी सप्तमी को आचार्य श्री से माताजी ने सातवीं प्रतिमा के व्रत लिये एवं माताजी ने दीक्षा हेतु श्री महाराज से निवेदन किया । महाराज ने कार्तिक बदी ४ का मुहूर्त दीक्षा हेतु निकाला किन्तु एन वक्त पर माताजी के घर वालों ने दीक्षा नहीं लेने दी व माताजी को घर ले गये । किन्तु माताजी का मन तो भगवान की खोज में था अतः छः साल बाद एक रोज ८ ( आठ ) दिन का नाम लेकर माताजी देहली चले गये । वहाँ आचार्य देशभूषणजी महाराज एवं धर्ममती माताजी के सान्निध्य में महाराज श्री के कर कमलों से मंगसर सुदी २ सं० २०२२ में क्षुल्लिका दीक्षा धारण कर ली।
क्षुल्लिका दीक्षा के बाद माताजी, आर्यिका धर्ममती माताजी के संघ में रहकर भारत के कोने कोने में धर्म प्रचार करती रही हैं। माताजी अपने विभिन्न चातुर्मास क्रमशः जयपुर, स्थोनिधि, (द० भा० ) बेलगांव (दक्षिणी भारत ) कोथली, फुलेरा, धूलिया (महाराष्ट्र ) एवं खानियां आदि कई स्थानों पर करती आ रही हैं।
जहाँ जहाँ भी माताजी गयी हैं वहाँ वहाँ विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान, जाप, मंडल विधान आदि का आयोजन करवाती रही हैं। जयपुर में साधुओं हेतु शुद्ध वैयावृत्त औषधि निर्माण का कार्य भी इन्हीं के प्रयासों से प्रारम्भ किया गया है । जिसका वर्तमान में वैद्य श्री सुशीलकुमार संचालन कर रहे हैं।
सं० २०३६ में धर्ममती माताजी का स्वर्गवास हो जाने से माताजी अकेली रह गई।
सौभाग्य से इस साल १०५ क्षुलिका जिनमती माताजी का चार्तुमास ग्राम रानौली, जिला सीकर ( राज० ) में बड़ी धूमधाम से हो रहा है । ६१ वर्षीय माताजी के मृदुभाषी स्वभाव एवं सारगर्भित उपदेश से न केवल जैन समाज के लोगों में ही एक नया मोड़ आया है अपितु अन्य धर्मावलम्बियों पर भी काफी अच्छा प्रभाव पड़ रहा है । कई क्षत्रियों ने तो रात्रि भोजन, मांस, मदिरा का त्याग एवं आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करने का व्रत ले लिया है । जब से माताजी यहाँ पधारे हैं तब से ही विभिन्न विधानों, मंडलों, अखण्ड णमोकार मंत्र जाप आदि का कार्यक्रम बराबर चल रहा है । माताजी के उपदेशों का सबसे ज्यादा असर छोटे बच्चों पर पड़ रहा है । जिसका ज्वलन्त उदाहरण यह है कि शायद ही कोई बच्चा ऐसा होगा जो माताजी के उपदेश में न जाता हो । इनके आगमन से सारा दिगम्बर जैन समाज रानौली मंत्र मुग्ध हो गया है।