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________________ [ २६६ दिगम्बर जैन साधु मुनिश्री विवेकसागरजी महाराज meworrypornwwweweremonymnamgyapane .. . आपका जन्म ग्राम मरवा जिला जयपुर में हुआ। , आपके पिता का नाम श्री सुगनचन्दजी तथा माता का नाम रजमतीबाई था। आप छाबड़ा गोत्रज हैं आपकी प्रारम्भ से ही धर्म की ओर विशेष रुचि थी। पिताश्री परिवार सहित आजीविकोपार्जन हेतु बासम जाकर रहने लगे। आपके भाव दिन प्रतिदिन वैराग्य की ओर बढ़ते रहे, आपको विद्यासागरजी का संयोग मिला, आपने पहली प्रतिमा के व्रत · ग्रहण कर वैराग्य मयी जीवन की ओर प्रवेश किया। कुछ दिन पश्चात् प्राचार्य विमलसागरजी से दूसरी प्रतिमा ली, तथा आर्यनन्दि गुरु के सान्निध्य में सप्तम प्रतिमा के व्रत ग्रहण कर लिये । इसप्रकार उत्तरोत्तर त्याग मार्ग की ओर बढ़ते-बढ़ते आचार्य ज्ञानसागरजी से नसीराबाद ( अजमेर ) में फाल्गुन कृष्णा ५ शुक्रवार सं० २०२५ के दिन संसार तारक परम दैगम्बरी दीक्षा धारण की आचार्य श्री ने आपके विवेक की सराहना करते हुए आपका नाम विवेकसागर रखा । आप बहुत ही कठिन तपस्या में रत रहते हैं, आपकी प्रवचन शैली बहुत ही सरल है, गुरु आदेश से अपनी विवेक असि को भाजते हुए कर्मों की कड़ियां काट रहे हैं। क्षुल्लक स्वरूपानन्दजी महाराज आपका जन्म ५-७-५१ को ग्राम नांदसी जिला अजमेर में हुवा था। आप खण्डेलवाल जाति में छाबड़ा गोत्रज हैं, बचपन का नाम श्री दीपचन्दजी था । पापकी शिक्षा एम० कॉम० तक हुई। आपने मुनि ज्ञानसागरजी से क्षुल्लक दीक्षा ली । आप अच्छे वक्ता तथा उच्चकोटि के लेखक भी हैं । आपके प्रवचनों से जैन जगत में काफी धर्म प्रचार होता था । संयोग से असाता कर्म का उदय हुआ। आपने क्षुल्लक दीक्षा का त्याग कर दिया। अब पुनः गृहस्थ के व्रतों को पाल रहे हैं।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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