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दिगम्बर जैन साधु
पं० जी सबसे प्रथमं श्री दि० जैन पाठशाला, केसरगंज अजमेर ( वर्तमान में श्री दि० जैन उ० प्रा० विद्यालय ) में धर्माध्यापक नियुक्त हुए । तीन वर्ष के बाद यहां से त्याग पत्र देकर स्व० रायबहादुर बावू नानमलजी अजमेरा के प्राइवेट पण्डित बनकर कार्य करते रहे ।
करीबन सन् १९३६ में मदनगंज में दि० जैन विद्यालय की स्थापना ( वर्तमान में के० डी० जैन हायर सैकण्डरी स्कूल ) हुई । उसके प्रथम अध्यापक पं० महेन्द्रकुमारजी पाटनी नियुक्त हुए । आपके सतत् प्रयास से विद्यालय प्रगति की ओर बढ़ता गया । पण्डितजी के अध्यापन कार्य एवं कर्त्तव्यनिष्ठा की अमिट छाप विद्यालय में सदा बनी रही। यह विद्यालय राजस्थान में एक सुप्रसिद्ध शिक्षण संस्था है । आप यहाँ से ३१ जुलाई १६७४ को सम्मान पूर्वक सेवानिवृत्त हुए। आपकी इस अनुपम सेवा पर मदनगंज जैन समाज ने भी आपको अभिनन्दन पत्र अर्पित किया ।
आपने इस अवसर पर निम्नप्रकार से अपनी दान घोषणा की
१००१) श्री जैन भवन, मदनगंज
१००१) श्री तेरह पंथी मन्दिरजी मदनगंज
१००१) श्री मंदिरजी ऊँटड़ा
१००१) श्री के. डी जैन हायर से. स्कूल मदनगंज
इसके अतिरिक्त छह हजार रुपयों की राशि अपने पुत्रों के पास रखदी है कि जहाँ उचित समझें वहाँ देते रहें । इस प्रकार आपने अपने उपार्जित द्रव्य का बड़ा सदुपयोग कर लिया । आपके दो सुयोग्य पुत्र हैं, बड़े पुत्र श्री चेतनप्रकाश जोधपुर विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक हैं और छोटे पुत्र श्री पदमचन्द, केन्द्रीय भेड़ एवं ऊनशोध संस्थान अविकानगर ( जयपुर ) में वरिष्ठ शोध सहायक हैं । इसप्रकार दोनों पुत्र अच्छे पदों पर कार्यरत हैं ।
मदनगंज जैन समाज ने पण्डितजी से अपेक्षा की थी कि वे मदनगंज में रहकर समाज व धर्म की सेवा में अपना अधिक योग प्रदान करें । लेकिन पण्डितजी ने आत्म हितार्थ गृह त्याग कर आचार्यकल्प १०८ पूज्य श्री श्रुतसागरजी महाराज से क्षुल्लक पद धारण करने के लिए श्रीफल भेंट कर दिया और क्षुल्लक दीक्षा रेनवाल में ली ।
पण्डितजी विद्वान होने के साथ साथ दृढ़ चरित्रनिष्ठ भी हैं । आप जीवन में कई कठोर त्याग लेकर सदैव अपने हित में लगे रहे। बड़ी प्रसन्नता की बात है कि वे जैसे अन्दर वैसे सदैव बाहर रहे । आपकी वृत्ति सादा एवं विचार सदैव उच्च रहे ।