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दिगम्बर जैन साधु मापिका समयमतीजी
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जव परम पूज्य आचार्य श्री १०८ स्व० वीरसागरजी महाराज की शिष्या आर्यिका श्री १०५ ज्ञानमती माताजी ने हैदराबाद में चातुर्मास किया तब ही परम पूज्य आचार्य श्री १०८ स्व० शिवसागरजी महाराज से आज्ञा प्राप्त कर पूजनीया ज्ञानमती माताजी ने ब्रह्मचारिणी मनोरमाबाई को क्षुल्लिका दीक्षा दी और इनका नाम अभयमती रखा । इस उपलक्ष में मनोरमावाई ने १४-८-१९६४ को अपनी ओर से उमास्वामी श्रावकाचार ग्रन्थ भी प्रकाशित करवाया था। .
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आपका जन्म आज से ३१ वर्ष पूर्व टिकेतनगर (वारावंकी) उत्तरप्रदेश में हुआ। आपके पिता श्री छोटेलालजी गोयल हैं । और माता मोहनीदेवी हैं तथा पूजनीया ज्ञानमती माताजी आपकी बड़ी बहन हैं । वचपन में आपको मनोवती कहते थे । मनोरमा वहन की बाल्यकाल से ही घरेलू कार्यों की ओर उतना रुझान न था जितना कि साधु सत्संग धर्मोपदेश-लाभ की ओर था। घर पर आपने तत्वार्थ सूत्र तक धार्मिक शिक्षा ली । आप वचपन से ही उदार व सरल स्वभाव की थी। .
___ संवत् २०१८ में फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में जव लाडनू में मानस्तम्भ की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा थी और आचार्य श्री १०८ शिवसागरजी महाराज ससंघ विराजमान थे तब आप मां के साथ दर्शन के लिए आई और मां को राजो कर आचार्य श्री से एक वर्ष के लिए ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया। संघ में ही रहने लगी। संघ के साथ शिखरजी की यात्रा की । आरा नगर में पहुंचने पर आचार्यश्री १०८ विमलसागरजी महाराज से आपने पांचवीं प्रतिना के व्रत ले लिये थे। शिखरजी में भगवान् पार्श्वनाथजी की टोंक पर आपने माताजी से सातवी प्रतिमा के व्रत ले लिये थे। कलकत्ता से संघ पुनः शिखरजी पहुँचा। फिर खण्डगिरि उदयगिरि होता हुआ हैदराबाद पहुंचा। आपने ज्ञानमती माताजी से आर्यिका दीक्षा देने के लिये आग्रह किया तो उन्होंने आचार्यश्री की अनुमति आवश्यक बतायी । आपने आचार्य श्री १०८ धर्मसागरजी महाराज से आर्यिका दीक्षा ली।