________________
२३६ ]
दिगम्बर जैन साधु मुनि श्री गुणसागरजी महाराज
ARMA
१०८ श्री मुनि गुणसागरजी महाराज का जन्म महाराष्ट्र राज्य के बीड़ जिले में सुरम्य उमापुरी ग्राम के श्रीमान् श्रेष्ठी चम्पालालजी पाटनी जाति खण्डेलवाल की धर्मपत्नी माता कस्तूराबाई की कुक्षि से सं० १९९६ में हुआ आपका जन्म नाम राजमल था। आपके और भी तीन बड़े भ्राता उत्तमचन्दजी, गुलाबचन्दजी, पूनमचन्दजी थे। मातापिता और भाई-बहनों के प्यारे लघु कुवर राजमलजी ही
थे । आप स्वर्गीय आचार्य श्री शिवसागरजी महाराज के Li n earericrorecarni भानजे थे । जैसे मामा ने आत्मकल्याण का मार्ग ढूढ़ा उसी मार्ग के आप भी प्रवर्तक हुए। आचार्य महाराज श्री की सतत् प्रेरणा से आप बचपन से ही संघ में रहने लगे । आचार्य श्री को पूर्ण कृपा थी । सं० २०२६ में आपने दूसरी प्रतिमा के व्रत लिये और धीरे धीरे आगे बढ़ते हुए सप्तम प्रतिमा धारण को आप बाल ब्रह्मचारी हैं ।
___ सं० २०२५ में शान्तिवीर नगर में पंच कल्याणक प्रतिष्ठा के समय आचार्य श्री का अकस्मात् स्वर्गवास हो जाने से आपका मन संसार से विरक्त हो गया और आपने नवीन प्राचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज से क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की।
भगवान् महावीर २५०० सौवें निर्वाण महोत्सव के शुभ अवसर पर संघ भारत की महान नगरी दिल्ली में आया। वहां पर आपने आचार्य श्री से मुनि दीक्षा ग्रहण की और आपका नाम गुणसागर रखा । जैसा नाम वैसा गुण आपमें नजर आता है। आप कई वर्षों से १०८ श्री अजितसागरजी महाराज के संघ में निरन्तर धर्म ध्यान में रत हैं।