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________________ दिगम्बर जैन साधु [ २३३ वे अत्यन्त शान्तस्वभावी, निस्पृही, परमज्ञानी, सुवक्ता तथा कविं व युवा आचार्य श्री विद्यासागरजी हैं। ___ आप ( श्री मल्लिसागरजी ) के अन्य दो पुत्रों तथा पत्नी और दोनों पुत्रियों ने आपके साथ दीक्षा ग्रहण की । आपके द्वितीय पुत्र श्री अनन्तनाथ ने ऐलक दीक्षा ली, नाम श्री योगिसागर रखा गया। तीसरे पुत्र का नाम श्री शान्तिनाथ था तथा ऐलक दीक्षा के उपरान्त श्री समयसागर नाम रखा गया । आपकी धर्म पत्नी श्री मतिबाई का नाम श्री आर्यिका समयमतीजी रखा गया । आपकी छोटी पुत्री स्वर्णमाला का नाम दीक्षा उपरान्त प्रवचनमतीजी रखा गया। दोनों ऐलक अब मुनि श्री बन गये हैं जो आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के संघ में हैं। इसप्रकार आपका पूरा परिवार दीक्षा धारण करके धर्मसाधन और ज्ञानोपार्जन में पूर्णतया रत है । इस काल में जवकि लोग व्रत, संयम तथा चारित्र पालन को कठिन समझते हैं, आपका जीवन एक महान आदर्श उपस्थित करके हम सबकी प्रांखें खोलने तथा चारित्र की ओर दृढ़ता पूर्वक बढ़कर आत्म कल्याण करने एवं मानव जीवन को सफल बनाने की प्रेरणा देता है।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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