________________
२१४ ]
दिगम्बर जैन साधु भगवान की वाणी औषधि के समान है, जो जन्म मरण रूपी रोगों को हरती है । जो विषय रूपी रोग का विवेचन करती है। और समस्त दु:खों का नाश करने वाली है, जो उस वाणी का अध्ययन करते हैं, वे निर्मल तप करके केवलज्ञान को प्राप्त करते हैं। मुनिराज की अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग की प्रवृत्ति प्रशंसनीय है।
मनिश्री शीतलसागरजी
आपका जन्म माघ मुदी पंचमी सम्वत् १९५५ के दिन परवार जातीय वाझल्ल गोत्र में श्रीमान् गोपालदासजी मोदी के घर श्रीमती हरबाईजी की कुक्षि से रायसेन जिले के वीरपुर ग्राम में हुआ था। गृहस्थावस्था में आपका नाम नन्हेंलाल था।
आपके माता-पिता उदार हृदयी सन्तोपी व्यक्ति थे । आप अपने माता पिता के बीच एक मात्र लाडले पुत्र
थे । घर गृहस्थी का पूरा भार आपके Awaist..
ऊपर ही निर्भर था । आपके पिता ने आपको मात्र प्रारम्भिक स्कूली शिक्षा ही दिलाई। अल्प शिक्षा प्राप्त कर
"
Seart