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दिगम्बर जैन साधु
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वर्तमान में श्राप मांगीत गी का उद्धार कर रहे हैं । आपने इस क्षेत्र के लिए १ करोड़ का योगदान दिलाया है ।
धन्य है वो धरा, धन्य है वो माता ! ! ! धन्य है वो पिता, धन्य है वो कुल, धन्य है वो जाति जिन्होंने ऐसे तेजस्वी रत्नों को प्रसूत कर धर्मध्वजा फहराई है । ऐसे महान् सन्त के पुनीत चरणों में मेरा शत शत वंदन हो ।
धन्य है वो माता, धन्य है वो पिता ।
जिनके पावन दर्शन से नश जावे मिथ्यातम का माथा ॥
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क्षुल्लक योगीन्द्रसागरजी
क्षुल्लक श्री १०५ योगीन्द्रसागरजी का गृहस्थावस्था का नाम हेमचन्द्रजी था । आपका जन्म आज से लगभग ६५ वर्ष पूर्व राठोड़ा (उदयपुर) राजस्थान में हुआ था । आपके पिता श्री पाढ़ाचन्द्रजी थे । जो खेती एवं व्यापार करते थे । आपकी माताजी का नाम माणिकबाई था । आप नरसिंहपुरा जाति के भूषरण हैं । आपकी धार्मिक एवं लौकिक शिक्षा साधारण ही हुई । विवाह भी हुआ । परिवार में आपके तीन भाई, एक बहिन, चार पुत्र एवं चार पुत्रियां हैं ।
आचार्य श्री १०८ शिवसागरजी की सत्संगति के कारण आपमें वैराग्य भावना जागृत हुई । अतः विक्रम संवत् २०२४ में उदयपुर में आचार्य श्री १०८ शिवसागरजी महाराज से आपने क्षुल्लक दीक्षा धारण कर ली । आपने प्रतापगढ़ आदि स्थानों पर चातुर्मास कर धर्म की आशातीत वृद्धि की ।
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