________________ दिगम्बर जैन साधु मुनि श्री वृषभसागरजी महाराज कार्तिक कृष्णा अमावस्या सं० 1658 की धन्य घड़ीमें अग्रवाल सिंहल गोत्रमें महाभाग्य लाला श्री फूलचन्द्रजी के घर माता धी छोटोवाई की कोख से जिला मुजफ्फरनगर के ऐलम नामक ग्राम में आपका जन्म हुआ था / वह माता पिता धन्य हैं जिनने ऐसे पुण्यशील व्यक्ति को जन्म दिया। वालापन में आपका नाम, "कश्मीरीलाल" रखा गया / जन्म के समय आपके माता पिता को आर्थिक स्थिति कमजोर थी। आपके पिताश्री उदार प्रकृति, सन्तोषी एवं धार्मिक प्रवृत्ति के थे तथा देहली को एक फर्म में खजांची का कार्य करते थे / आपसे छोटे दो भाई श्री विशम्बर दयालजी एवम् श्री उमरावसिंहजी हैं। जेठ सुदी चतुर्दशी सम्वत् 1967 के दिन पिताश्री का देहावसान हो गया / उस समय आपकी उम्र मात्र 6 वर्षकी थी। घर का सारा भार आपके ऊपर आ पड़ा / पिताजो की मृत्यु के कुछ समय बाद ही खारी बावली देहली की एक सरकारी पाठशाला में आपने मुण्डी एवम् उर्दू की अल्प शिक्षा प्राप्त की। उसी समय 3 माहके लगभग अंग्रेजी भाषा के अभ्यासका भी मौका मिला और ज्ञानार्जन किया / हिन्दी भापा का ज्ञान स्वयं के अभ्यास से घर पर ही प्राप्त किया और पिताश्री के स्थान पर उसी फर्म में खजांची का कार्य सोखने लगे। 4E 4-7 16 वर्ष की आयु में जिला मेरठ के वमनौली ग्राममें श्री हुशयारसिंह की वहिन श्रीमती महादेवी के साथ आपका विवाह हो गया / श्री हुशयारसिंह एक बड़े उदार, धार्मिक प्रवृत्ति के पुरुप हैं / आजकल बड़ौतमें अनाज के अच्छे व्यापारी हैं, आपकी धर्मपत्नी श्रीमती महादेवीजी दो प्रतिमा के व्रतों का पालन करती हुई घर पर ही गृहकार्य के अलावा आत्मोन्नति की ओर अग्रसर हैं। आपके पूर्वज ( कुटुम्वी जन ) श्वेताम्वर मुंह पट्टी वालों के अनुयायी थे। अपने पूर्वजोंकी परम्परानुसार आप भी श्वेताम्बर सन्तों के समीप जाया करते थे। एक दिन आप श्वेताम्बर स्थानक में बैठे थे / आपके यहां से एक मील दूर भनेड़ा ग्राम था वहाँ पर दिगम्बर जैनों द्वारा दशलक्षण