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दिगम्बर जैन साधु
कमलों ते ५ दीक्षाएं सम्पन्न हुई तथा आपके संघस्थ क्षु० योगीन्द्रसागरजी महाराज जिन्हें मुनिदीक्षा प्रदान कर दी गई थी का आपके चरण सान्निध्य में सल्लेखना पूर्वक स्वर्गारोहण हुआ था । वर्षायोग सानन्द सम्पन्न होने के पश्चात् आपने ससंघ पद्मपुरा की ओर मंगल विहार किया । पद्मपुरा में पद्मप्रभु भगवान के दर्शन करने के पश्चात् ग्राम ग्राम मंगल विहार करके धर्मामृत की वर्षा करते हुए वि० सं० २०२७ का चातुर्मास टोंक नगर में स्थापित किया । इससे ४ वर्ष पूर्व श्राप मुनि अवस्था में चातुर्मास कर चुके थे । इस समय आपके साथ ११ मुनि एवं १८ - १९ आर्थिका थी । इस प्रकार विशाल संघ के आचार्यत्व का भार आप पर था जो श्रद्यप्रभृति है । टोंक से विहार करते हुए वि० सं० २०२८ का वर्षायोग अजमेर नगर में स्थापित किया । इस वर्ष भी धर्म की महती प्रभावना के साथ साथ आपके कर कमलों से ७-८ दीक्षायें सम्पन्न हुई थी । इसके पश्चात् क्रमशः वि० सं० २०२६ (लाड) और वि० सं० २०३० (सीकर) नगर में आपके ससंघ दो चातुर्मास हुए। सीकर वर्षायोग के पश्चात् आपने दिल्ली महानगर की ओर विहार किया ।
भगवान महावीर का २५०० वाँ परिनिर्वाणोत्सव :
वि० सं० २०३१ तदनुसार सन् १९७४ में सम्पन्न होने वाले निर्वारगोत्सव में आपको विशेष रूप से आमन्त्रित किया गया था और दिगम्बर सम्प्रदाय के परम्परागत पट्टाचार्य होने से आपका विशेष अतिथि के रूप में राष्ट्रीय समिति में भी नाम रखा गया था । निर्वाण महोत्सव की प्रत्येक गतिविधि में प्रायः आपसे विचार विमर्श किया जाता था । आपने सम्पूर्ण कार्यक्रमों में इस बात का सदेव ध्यान रखा कि दिगम्बर संस्कृति प्रक्षुण्ण बनी रहे । इसका कारण यह था कि इस महोत्सव में जैन धर्म के चारों सम्प्रदाय सम्मिलित हुये थे । महोत्सव पर समिति की ओर से प्रकाशित होने वाली भगवान् महावीरस्वामी की जीवनी जो कि चारों सम्प्रदाय को मान्य होनी थी जब आपके पास अवलोकनार्थं आयी तो उस पर आपने अपनी सहमति देने से इन्कार कर दिया, क्योंकि उसमें दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुसार कई स्थल अनुचित थे । महोत्सव में होने वाले ऐसे प्रत्येक कार्य में आपने अपनी सहमति देने से इन्कार कर दिया जिसमें वीतराग प्रभु महावीर और उनके द्वारा प्रतिपादित धर्म को आसादना होने की सम्भावना थी । इसी कारण महोत्सव समिति के प्रधान कार्यकर्ता क्षुब्ध भी हुये और कहा कि आप हमें कुछ भी कार्य नहीं करने देना चाहते तो हम समिति में रहकर ही क्या करेंगे ? आपने अत्यन्त गम्भीरता से अपने मनोभावों को अभिव्यक्त करते हुये कहा कि "आप लोगों को क्षुब्ध होने की आवश्यकता नहीं है मैं यह चाहता हूं कि दिल्ली जो कि भारत की राजधानी है उसमें होने वाले महोत्सव सम्बन्धी प्रत्येक कार्यक्रम पर सारे देश की समाज की दृष्टि लगी हुई है और सभी प्रमुख धर्माचार्यो के सान्निध्य में होने वाले इस महोत्सव सम्वन्धी कार्यक्रमों का अनुकरण सारा समाज