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क्ष० श्री धर्मसागरजी महाराज
(कुरावड़ निवासी)
महाराणा प्रताप की वीर भूमि मेवाड़ प्रान्त के कुरावडं ग्राम में आपका जन्म हुवा था। पिता का नाम राधाकृष्ण था, माँ का नाम हीरावाई था। पौष सुदी दशमी संवत् १९३७ को चुन्नीलाल का जन्म हुवा था । आपका जन्म ब्राह्मण कुल में हुवा था। विवाह होने के कुछ वर्ष पश्चात् आ० क० चन्द्रसागरजी महाराज का आगमन हुवा तव आपने मुनि श्री के प्रवचन सुने तथा उसी समय आपने जैन धर्म को स्वीकार कर श्रावक के व्रत धारण किए जब परिवार वालों ने सुना कि चुन्नीलाल ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया है तो परिवार वालों ने उन्हें जाति से बाहर कर दिया। पर आपने अपने मन से जैन धर्म को नहीं छोड़ा तथा आप सपत्नीक व्रतों को धारण कर आत्म कल्याण में लग गये । समय के अनुसार पत्नी का वियोग हो गया तब आपने मुगेड़ में महाराजजी से सातवीं प्रतिमा के व्रत धारण किए । प्रा० शान्तिसागरजी से क्षुल्लक दीक्षा ली। दीक्षा लेने के पश्चात् आपने वागड़ प्रान्त में विहार किया तथा अनेक भीलों को मांस खाने का, शराब पीने का त्याग कराया। भीण्डर नरेश ने रात्रि में भोजन नहीं करेंगे, ऐसा नियम लिया था। तथा हमारे प्रान्त में आठम, ग्यारस, चौदस, अमावस एवं पूनम को जीव हिंसा नहीं होगी। आपके द्वारा बागड़ प्रान्त में सैंकड़ों पाठशालाएँ, गुरुकुल खुलवाये गये तथा विधवा विवाह आदि का त्याग कराया तथा अन्त समय तक धार्मिक कार्यों के प्रचार प्रसार में लगे रहे । आप बागड़ प्रान्त के प्राण थे।
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