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दिगम्बर जैन साधु
मुक्ति चाही, पर आचार्य श्री ने आपको ही अपना उत्तराधिकारी बनाया । पौप शुक्ला दशमी रविवार को आप अनेक मुनिराजों, व्रतियों तथा अनेक स्थानों की समाज के समक्ष आचार्य घोषित किये गये । इस समय अनेक विद्वान, श्रेष्ठ राज्याधिकारी उपस्थित थे । सभी ने ताली बजाकर नाम की जय बोल कर आपको अपना प्राचार्य माना । कुशलगढ़ जैन समाज के इस कुशलतादायी कार्य की सभी ने सराहना की ।
समाधिमरण व शोभा यात्रा :
आपने आचार्य पद पर आसीन रहते संघ को अनुशासनवद्ध किया | झाबुआ निवासियों से आचार्यश्री के रूप में आपने दो माह पहले ही कह दिया था कि श्रव मेरा शरीर अधिक से अधिक दो माह तक टिकेगा । आप सर्वदा धार्मिक कार्यो में सावधान रहते थे । समाधिमरण के लिए तैयारी कर रहे थे । पौष शुक्ला द्वादशी सोमवार वि० सं० १९९५ में, जब दोपहर को संघ के साधु प्रहारचर्या से प्राये तव उन्होंने आचार्यश्री की समाधि वेला समीप देखी, आपको क्षयरोग था पर दो दिन से वह था भी; इसमें सन्देह होने लगा था। तीन दिन पहले से श्रापने खान-पान, प्रमादजनित क्रियाओं को त्याग दिया था । अन्तिम समय में श्रापने जिनेन्द्रदर्शन की इच्छा प्रकट की तो भट्टारक यशकीर्ति ने भगवान आदिनाथ के दर्शन कराये । आपने गद्गद् हो भक्ति भाव लिये कहा हे प्रभो ! मेरे आठों कर्म नष्ट हों और मुझे मुक्तिश्री मिले । इसी दिन संध्या के समय अत्यन्त सावधानी के साथ आपने समाधिमरण का लाभ लिया ।
श्री १०८ श्राचार्य सुधर्मसागरजी के स्वर्गवास का समाचार क्षणभर में दाहोद, इन्दौर, रतलाम, थोंदला, झाबुआ आदि स्थानों पर पहुंचा । अतीव साज सज्जा के साथ पदमासन में आचार्य का दिव्य शरीर नगर के प्रमुख मार्गों में से निकला । संघ स्नात पं० लालारामजी जलधारा देते विमान के सबसे आगे थे । मुनि और आर्यिका श्रावक और श्राविका का चतुर्विध संघ साथ था। एक ब्राह्मण ने आचार्य श्री की पूजा की, शंखनाद कर उनको स्वर्गवासी घोषित किया । शास्त्रोक्त पद्धति से दाहसंस्कार हुआ। शोक सभा में पं० लालारामजी ने भाषण ही नहीं दिया बल्कि उनके पदचिन्हों पर चलने के लिए द्वितीय प्रतिमा के व्रत भी लिये जहां आपका अन्तिम संस्कार हुआ था वहां तीन दिन वाजे वजे, जागरण-भजन कीर्तन हुए, महाराज की पूजा हुई ।
घोषणा :
राज्य की ओर से घोषणा हुई कि आचार्य सुधर्मसागरजी का स्मृतिदिवस मनाने के लिए अवकाश रहेगा, हिंसा नहीं होगी। संघ की ओर से घोषणा हुई, आचार्यश्री के स्मृति दिवस पर प्रतिवर्षं रथोत्सव होगा। मुनिसंघ ने स्वेच्छा से सुधर्मसागर संघ की स्थापना करने का भाव प्रकट किया ।