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दिगम्बर जैन साधु
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लिवा ले गये और आपने अलवर में ही आचार्य महाराज से ब्रह्मचर्य की दीक्षा लेली । दो वर्ष बाद ही आपने उदयपुर में क्षुल्लक दीक्षा लेली और थोड़े दिन बाद ही श्राप ऐलक भी बन गये ।
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लाला परसादीलालजी पाटनी महामंत्री भारतवर्षीय दि० जैन महासभा ने सीकर में निज द्रव्य से पंच कल्याणक प्रतिष्ठा विक्रम संवत् २००४ में कराई । आप भी वहां गये थे वहीं प्रापने श्राचार्य महाराज से परोक्ष प्रदेश प्राप्त कर दिगम्बर दीक्षा धारण करली । आप सदैव रोग युक्त भी रहते हैं । आपके कंठ से भोजन भी नहीं निगला जाता तो भी आप अपनी तपो निष्ठा में लीन रहते हैं । अनेक उपवास करते हैं । अनेक कठिन से कठिन सिंहनिःक्रीड़ितादि व्रत करते हैं । आपने अनेक स्थानों में विहार कर धर्म की बड़ी प्रभावना की है । आपका उपदेश बड़ा ही हृदयग्राही होता है | आपका अस्थिमात्र शुष्क निर्बल शरीर किन्तु उसमें रहने वाली महान् श्रात्मा की विशेषता देखकर दंग रह जाना पड़ जाता है और दर्शनमात्र से ही अनेक भक्त मुमुक्षु प्राणी धर्म के सन्मुख हो जाते हैं । इस समय आपका विहार नागपुर प्रान्त में हो रहा है । श्राप बड़े भारी तपोनिष्ठ, वीतरागी, शत्रु मित्र समभाव निश्चित दिगम्बर जैन साधु हैं। मेरी उक्त मुनि महाराज के चरणों में त्रिविध शुद्धि से वारंवार प्रणमांजलि है ।
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