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जिह्वा - निग्रह
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जिह्वा, आँख, नाक, कान और शरीर की त्वचा ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं और हाथ पाँव, शिश्न, उदर और गुहा ये पाँच कर्मेन्द्रियाँ हैं । इन इन्द्रियों में जिह्वा और जननेन्द्रिय ( उपस्थ ) का निग्रह मुख्य है ।
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जिह्वा निग्रह
जिल्हा का कर्त्तव्य वाक्योच्चारण और भोजन है । वाक्य सत्य, सुखद, हितकर, आवश्यक, कर्तव्यसाधक, धर्म-मूलक श्रादि सद्गुणों से युक्त होना चाहिए और असत्य, प्रयथार्थ, दुःखद, अनावश्यक, उत्पात-जनक, अरुचिकर, अहित, अधर्ममूलक यदि निन्दित का कदापि प्रयोग नहीं होना चाहिए, क्योंकि शब्द ब्रह्म का रूप है । शब्द का दुरुपयोग करना चड़ा गर्हित कर्म है ।
भोजन में केवल सात्विक पदार्थ का व्यवहार होना चाहिए। राजसिक और तामसिक पदार्थ का त्याग करना चाहिए । क्योंकि शुद्ध भोजन से केवल शरीर ही स्वस्थ और नीरोग नहीं रहता किन्तु मन और बुद्धि भी शुद्ध और स्वच्छ रहती है इसके विरुद्ध राजसिक तामसिक भोजन से शरीर अस्वस्थ, रोगी और शक्तिहीन हो जाता है और मन बुद्धि भी कलुषित होती है । छान्दोग्योपनिषत् का वचन है- "आहारशुद्धौ
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