________________
६६
शौच वही यथार्थ में पवित्र है, केवल मिट्टी पानी के व्यवहार से शुद्धि नहीं होती है।
और भी लिखा है किमागृधः कस्य स्विद्धनम् ॥ १ ॥
ईशावास्योपनिषत किसी की वस्तु अन्याय से मत लो। औरन हर्त्तव्यं परधनमिति धर्मः सनातनः ।। १२ ॥
___महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय २५८ दूसरे का धन अन्याय से न लेना ही सनातन धर्म है।
शौच पाँचवाँ धर्म शौच है जिसका अर्थ पवित्रता है। जैसा किअद्भिर्गात्राणि शुद्धयन्ति मनः सत्येन शुद्धयति । विद्यातपोभ्यां भूतात्मा बुद्धिर्ज्ञानेन शुद्धयति ॥
मनुस्मृति अध्याय ५ जल से शरीर शुद्ध होता है, मन सत्य बोलने से शुद्ध होता है, विद्या और तपस्या द्वारा इन्द्रिय और कामात्मक मन शुद्ध होते हैं और ज्ञान द्वारा बुद्धि शुद्ध होती है। लिखा है किमनःशौचं कर्मशौचं कुलशौचं च भारत !। शरीरशौचं वाकशौचं शौचं पञ्चविधं स्मृतम् ॥