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धृति संसार को बहुत बड़ा लाभ और उपकार हुआ। इसी प्रकार महात्मा ईसु क्राइस्ट के शूली पर चढ़ने पर भी अपने शत्रु के अपराध को क्षमा के लिये ईश्वर से प्रार्थना रूपी उनका धैर्य और क्षमा उनके मत के विशेष प्रचार का मुख्य कारण हुआ । महाप्रभु चैतन्य के संन्यास - वृत्ति के कष्ट को स्वीकार करने से भी हरिनाम का विशेष प्रचार होकर देश का बड़ा उपकार हुआ । त्याग, सहिष्णुता और धैर्य का परस्पर घनिष्ट सम्बन्ध है । क्योंकि बिना त्याग और सहिष्णुता के धैर्य का लाभ नहीं हो सकता ।
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ऊपर के महान व्यक्तियों के कष्ट का हजारहवाँ भाग कष्ट भी हम लोगों को नहीं आता है, तथापि हम लोग अधीर हो जाते हैं। अतएव हम लोगों को चाहिए कि कष्ट आने पर पूर्व के समय महानुभावों के कष्ट के ऊपर विचार कर समझें कि कष्ट हित के लिये आता है और इसके बाद सुख शान्ति अवश्य मिलती है और इन लोगों ने हम लोगों को धैर्य देने के लिये कष्ट सहकर इतना बड़ा उदाहरण संसार को दिया । लिखा है कि---
"चक्रवत्परिभ्राम्यन्ति दुःखानि च सुखानि च " | अर्थात् गाड़ी के पहिये की भाँति दुःखसुख एक के बाद दूसरा अवश्य आता है । ऊपर कथित सिद्धान्त और उदाह रण आदि पर विचार करने से धैर्य का लाभ होगा। यह भो विचारना चाहिए कि इस संसार में ऐसा एक भी व्यक्ति
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