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________________ विशेष धर्म । श्रीमनागवत पुराण म्कन्ध ७ प्रल ११ का वचन है "यस्य यातागं प्रोन पुसी वर्गाभिव्य समः। यदन्यत्रापि वश्यंत तत्तेनैव विनिर्दिशन।" ३५ । इं राजन ! जिस पुरुप का जो यर्ग को प्रकट करनवाला नत्तण कहा है. वह लन्ना अन्य वों के पुरुषों में यदि देखन में 'प्रावे नी उस अन्य वर्ग के पुरुष को भी उमलनग के कारण उस वर्ग का ही समझा। गुग्ण पार चरित्र का सर्वत्र सादर है. मनाएव चरित्रवान् गुणथान परोपकारी किसी वंश में क्यों न हो वह अपने चरित्र के चन्न में अवश्य अपर पा जायगा पीर धादरणीय हो जायगा। शुद्र की बेनी और वाणिज्य वृत्ति भी शान में कषित है। श्रीमहागवत पुराण स्कन्ध ७ अध्याय ११ फा वचन है"शुन्य संनतिःशीचं संवा स्वामिन्यमायया। अमन्त्रया अन्तयं सत्यं गोविप्ररक्षणम्।।२४ नमता, शौच, निष्कपट भाव से मालिक के कार्य का सम्पादन, वेदमन्त्रों से रहित यज्ञ, अन्याय से किसी की वस्तु को न लेना, सत्य और गा-नागा की रक्षा यं शुद्रों के लक्षण है। श्रीमद्भागवत पुराण बी और शुद के निमित्त विशेष कर बनाया गया है जिससे स्पष्ट है कि प्राचीन काल में शूद्र लोग भी नाचर्यावस्था में रहकर शास्त्राध्ययन करते थे। वृहस्पति स्मृति का वचन है कि "पञ्चयज्ञविधानन्तु शूद्रवपि विधीयते" अर्धात शूद्र को भी पञ्चमहायज्ञ करना चाहिए। इसी प्रकार चार आश्रमों का निर्माण इस विश्व-विराट-राष्ट्र की उन्नति और हित के लिये ही किया गया
SR No.010187
Book TitleDharm Karm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndian Press Prayag
PublisherIndian Press
Publication Year1929
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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