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कर्म में अविश्वास
१५६ मात्रा बहुत अधिक होगी, तो वे कदापि उस दुष्ट कर्म को नहीं करेंगे। बहुत लोग किसी कार्य अथवा. मनोरथ, की सफलता के लिये दुष्ट कर्म का भी अवलम्बन करते हैं किन्तु यह नितान्त भूल है, क्योंकि उसमें लाभ रूपी फल तभी होगा जब कि प्रारब्ध के अनुसार वह मिलनेवाला होगा किन्तु वह तो बिना दुष्ट कर्म किये भी होगा; बल्कि प्रारब्ध के अनुसार जो लाभ होना है उसमें, दुष्ट कर्म के करने से, कुछ कमी हो जायगी। कौन ऐसा है जिसको यदि यह ठीक मालूम रहे कि आज किसी से दस रुपये कर्जा लेने पर
और उस रुपये की सामग्रा से सुख पाने पर भी एक सप्ताह के बाद उसको दस. रुपये के बदले एक सौ रुपये देने होंगे और उनके देने की सामर्थ्य उसमें न रहने के कारण बहुत समय तक दासवृत्ति करके उस ऋण का उसको परिशोध करना होगा तो भी वह ऐसी अवस्था को समझ दस रुपये कर्जा ले १ कोई भी नहीं। किन्तु ऐसा ही काम हम लोग प्रतिदिन कर रहे हैं। क्षणिक सुख के लिये इन्द्रिय का दुष्ट विषय-भोग-रूपो कर्जा प्रकृति के रज और तम गुण से हम लोग लेते हैं जो शीघ्र समाप्त हो जाता है। उससे सुख भी नाम मात्र का होता है जिसका परिणाम यहीं प्रायः व्याधि, शोक, अर्थ-नाश आदि तक मिल जाता है। इस प्रकार इस जन्म और कई जन्म तक बाद में भी वह कर्ज सूद दर सूद लगाके हम लोगों को, अनेक क्लेशों को भोगकर,