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धर्म-कर्म - रहस्य
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तात्कालिक फल के कारण, जो यथार्थ में क्षणिक और स्वल्प होता है, न करना चाहिए किन्तु अवश्य उसके भविष्यत् के परिणाम पर अच्छी तरह विचार करके करना चाहिए। यदि ऐसा मालूम हो कि किसी कर्म का फल तत्काल में किसी प्रकार सुखद और लाभप्रद होगा किन्तु भविष्यत् में उससे दुःख और हानि होगी तो ऐसे कर्म को कदापि नहीं करना चाहिए । अधर्म और अनुचित कर्म के करने से इस लोक में भी सांसारिक लाभ होना पूरा अनिश्चित रहता है और प्रायः ऐसे कर्म से लाभ के वदले यहाँ भी हानि ही होती है, अतएव ऐसा कर्म त्याज्य है अनुचित कर्म के करने से भी प्रारब्ध के विरुद्ध लाभ न होगा और यदि प्रारब्धानुसार लाभ होना है तो अधर्म और अनुचित कर्म के वदन्ते धर्मोचित कर्म के करने पर भी उक्त लाभ अवश्य होगा और अधर्मोचित कर्म के करने के बुरे फल जो भविष्यत् में अवश्य होंगे उससे बच जायगा, अतएव अधर्माचरण सव अवस्था में हानि- प्रद ही है। ऐसा भी होता है कि वर्तमान में अधर्म की अधिकता से प्रारब्ध के उत्तम फल का भी ह्रास हो जाता है । यह प्रसिद्ध कथा है कि एक पापी को पाँच सौ रुपये की थैली मिलने और पुण्यात्मा को गिरकर पैर में चोट लगने का कारण पूछने पर एक महात्मा ने ऐसा बतलाया— पापी को अपने प्रारब्ध कर्मानुसार आज राज्य मिलना था जो उसके वर्तमान जन्म के दुष्ट कर्म की प्रबलता के कारण हास होकर पाँच सौ रुपये की थैली तक रह गया और पुण्यात्मा को आज