SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विविध-कर्म १५१ उन्नति के लिये यथेष्ट चेष्टा- शुभ कर्म और भावना द्वाराअवश्य करें। वर्तमान जन्म की अवधि तो बहुत घोड़ी है किन्तु भविष्यत् अनन्त है- भविष्यत् रूप नदी के प्रवाह में वर्तमान एक बूँद के बराबर है । तथापि वर्त्तमान मुख्य है, क्योंकि इसके उपयुक्त उपयोग द्वारा वर्तमान और भविष्यत् दोनों का सुधार होता है । अतएव इसकी उपेक्षा कदापि नहीं करना चाहिए और व्यर्थ नहीं बिताना चाहिए । इसी प्रकार यदि हम लोग पूरी ता से समझेंगे कि शुभ कर्म से ही शुभ फल मिलेंगे, दुष्कर्म के फल अवश्य दुष्ट ही होंगे, सुखद कदापि नहीं, तो हम लोग अवश्य शुभ कर्म का ही अनुसरण करेंगे और दुष्कर्म से कोसों भागेंगे। चूँकि हम लोग कर्म पर, जिसका कारण अभी श्रदृश्य है, यथार्थ में क्रिया द्वारा विश्वास नहीं करते; परलेोक और परजन्म की परवा नहीं रखते; फर्म के फल को घटल नहीं मानते; दूरदर्शिता के बदले स्वल्प दृष्टि का अवलम्बन करते हैं; इसी कारण हम लोग मोह और प्रमाद में फँसे रहते हैं और धर्म के बदले अधर्म में रत रहते हैं जिसका परिणाम अवश्य दुःख और क्लेश है । अतएव यह आवश्यक है कि हम लोग कर्म और कर्म के फल के अटल होने पर दृढ़ विश्वास रक्खें और व्यवहार में इसको कदापि न भूलें। प्रत्येक कर्म को उस कर्म के फल के परिणाम-रूपी कसौटी पर जाँच लें और तब यदि भविष्य में भी वह उत्तम फल देनेवाला मालूम पड़े तो करें, नहीं तो कदापि न करें। कर्म को केवल उसके
SR No.010187
Book TitleDharm Karm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndian Press Prayag
PublisherIndian Press
Publication Year1929
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy