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विविध-कर्म कर्म तीन प्रकार के हैं-(१)सञ्चित, (२) प्रारब्ध और (३) क्रियमाण । अनेक जन्मों के किये हुए जो कर्म इकडे रहते हैं उनको सञ्चित कर्म कहते हैं। सञ्चित का एक भाग, जिसको किसी एक जन्म में भोगना पड़ता है, प्रारब्ध कर्म है। और प्रति जन्म में जो नूतन कर्म मनुष्य उत्पन्न करता है, जो उसके बाद के जन्म में सञ्चित अथवा प्रारब्ध कर्म हो जाता है, वह क्रियमाण कर्म है। उसके द्वारा कर्म की वृद्धि होती है। प्रारब्ध कर्म भोगने ही से नाश होता है; उसका आना कदापि रुक नहीं सकता अर्थात् प्रारब्ध कर्मानुसार इस जन्म में जिसको जैसी अवस्था में रहना है, जितना धन सम्पत्ति उसके पास होना है और जितनी वस्तु उसे प्राप्त करनी है उतनी अवश्य होगी। उसमें न्यूनाधिक नहीं हो सकता। अतएव वर्तमान पूर्ण रूप से हम लोगों के हाथ में नहीं है, अर्थात् यह प्रारब्ध कर्मानुसार ही रहेगा किन्तु भविष्य अर्थात् पर-जन्म की दशा हम लोगों के हाथ में है। जैसे वीते हुए जन्म का क्रियमाण कर्म ही प्रारब्ध होकर उसके बाद के जन्म की अवस्था का कारण होता है, वैसे ही इस जन्म का क्रियमाण कर्म ही आगामी जन्म में प्रारब्ध कर्म होगा। इस प्रकार भविष्यत् अवश्य लोगों के हाथ में है। प्रारब्ध कर्म की परिधि में पड़के मनुष्य इस जन्म में जैसा कर्म करेगा