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________________ तेजस और मानसिक भावना १४१ और विषय के अभाव के कारण भी दुःखित न होकर यथार्थ में प्रसन्न ही रहेगा, अतएव अभ्यन्तर से सुखी बना रहेगा। क्योंकि विषयासक्ति वन्धन और दुःख का कारण है जिसका उसमें अभाव है। स्वार्थो धनी सद्गुणविहीन होने के कारण यथार्थ आन्तरिक आनन्द को प्राप्त न कर सकेगा, किन्तु निर्धन सदाचारी पण्डित आन्तरिक योग्यता और सद्गुण से विभूपित होने के कारण सदा प्रसन्न रहेगा और आनन्द-लाभ करेगा। यह यथार्थ अानन्द विपयी को कदापि नहीं मिलता है। अतएव लोगों को आन्तरिक योग्यता, सद्गुण, ज्ञान, भक्ति-भाव आदि प्राप्त करने का विशेष यत्न करना चाहिए, क्योंकि यही परम धर्म है और इसी से लोगों का यथार्थ कल्याण है। तेजस और मानसिक भावना मनुष्य के मस्तक के चारों ओर सूक्ष्म तेज रहता है और उसमें लोगों की भावनाओं और कर्म का प्रभाव पड़ता है और नियत प्रकार की भावना से नियत प्रकार का रङ्ग उसमें उत्पन्न होता है। जो लोग भीतर से मलिन हैं और जिनका चित्त दुष्ट कर्म के करने में प्रवृत्त रहता है वे ऊपर से कितने ही स्वच्छ और सुन्दर क्यों न रहें और अपने को धर्मात्मा प्रसिद्ध करने का कितना ही यत्न क्यों न करें, किन्तु सूक्ष्मदर्शी योगी की सूक्ष्म दृष्टि के आगे उनके सब दोष प्रकट रहते हैं। वे उनके मस्तक के पार्श्ववर्ती तेज के रङ्गों को देखकर उनके सब चरित्र और
SR No.010187
Book TitleDharm Karm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndian Press Prayag
PublisherIndian Press
Publication Year1929
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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